Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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१२ पढम परिसिटुं
[कप्पसुत्तं मा मे ते (एएसु) उत्तमा पहाणा मंगला सुमिणा दिट्ठा अन्नेहिं पावसुमिणेहि पडिहम्मिस्संतित्तिकट्ट देवयगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं लट्ठाहिं कहाहिं सुमिणजागरियं जागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ ॥ ५४-५६ ॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए पञ्चूसकालसमयंसि कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अज सेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्तं सुइयसंमजिओवलित्तं सुगंधवरपंचवण्णपुप्फोवयारकलियं कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुक्कडझंतधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधव टिभूयं करेह कारवेह करित्ता कारवित्ता य सीहासणं रयावेह रयावित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणह ॥ ५७-५८ ॥ तए णं ते कोथुवियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हतुट्ठ जाव हियया करयल जाव कट्ठ एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति (तेणेव) उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसि(तसुइय)त्तं जाव सीहासणं रयाविति रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ठ सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति ॥ ५९ ॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मीलियंमि अहापंडुरे पभाए, रत्तासोगप्पगासकिंसुयसुयमुहगुंजद्धरागबंधुजीवगपारावयचलणनयणपरहुयसुरत्तलोयणजासुयणकुसुमरासिहिंगुलयनियराइरेयरेहंतसरिसे कमलायरसंडबोहए उढ़ियंमि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते, तस्स य करपहरापरद्धंमि अंधयारे बालायवकुंकुमेणं खचियव्व जीवलोए, सयणिज्जाओ अब्भुढेइ ॥६०॥ सयणिजाओ अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ २ त्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अट्टणसालं अणुपविसइ २ त्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधवरतिल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिजेहिं मयणिजेहिं वि(वि)हणिज्जेहिं दप्पणिजेहिं सविदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे तिल्लचम्मंसि निउणेहिं पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहिं अब्भंगणपरिमद्दणुव्वलणकरणगुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जियपरिस्समेहिं पुरिसेहिं अद्विसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए सुहपरिक्कमणाए सं[वा]बाहणाए संबाहिए समाणे अवगय(खेय)परिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ ॥ ६१ ॥ अणसालाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मजणघरं अणुपविसइ २ त्ता

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