________________
८६६
सुत्तागमे
[ मिसीहसुतं
भिक्खू दंतवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३५६ ॥ जे भिक्खू उट्ठवीणियं वाइ वातं वा साइज्जइ ॥ ३५७ ॥ जे भिक्खू णासावीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३५८ ॥ जे भिक्खू कक्खवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३५९ ॥ जे भिक्खू हत्थवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६० ॥ जे भिक्खु णहवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६१ ॥ जे भिक्खू पत्तवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६२ ॥ जे भिक्खू पुप्फवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६३ ॥ जे भिक्खू फलवणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६४ ॥ जे भिक्खू बीय वीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ३६५ ॥ जे भिक्खू हरियवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ( एवं अण्णय राणि वा तहप्पगाराणि वा अणुदिण्णाई सद्दाईं उदीरेइ उदीरेंतं वा साइज्जइ) ॥ ३६६ ॥ जे भिक्खू उद्देसियं सेज्जं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा साइज्जइ ॥ ३६७ ॥ जे भिक्खू सपाहुडियं सेज्जं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा साइज्जइ ॥ ३६८ ॥ जे भिक्खू सपरिकम्मं सेज्जं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा साइज्जइ ॥ ३६९ ॥ जे भिक्खू णत्थि संभोगवत्तिया किरियत्ति वयइ वयंतं वा साइज्जइ ॥ ३७० ॥ जे भिक्खू लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अलं थिरं धुवं धारणिजं परिभिंदिय परिछिंदिय परिट्ठवे परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥ ३७१ ॥ जे भिक्खू वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अलं थिरं धुवं धारणिजं पलिछिंदिय परिद्ववेइ परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥ ३७२ ॥ जे भिक्खू दंडगं वा अवले - हणियं वा वे सूई वा पलिभंजिय २ परिवेइ परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥ ३७३ ॥ जे भिक्खू अइरेयमाणं रयहरणं धरेइ धरेंतं वा साइजइ ॥ ३७४ ॥ जे भिक्खू सुमाई रयहरणसी साइं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३७५ ॥ जे भिक्खू रयहरणस्स एक बंधं देइ देतं वा साइज्जइ ॥ ३७६ ॥ जे भिक्खू रयहरणं कंड्सगबंधेणं बंध बंधतं वा साइज्जइ ॥ ३७७ ॥ जे भिक्खू रयहरणं अविहीए बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ॥ ३७८ ॥ जे भिक्खू स्यहरणं एगेण बंधेण बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ॥ ३७९ ॥ जे भिक्खू रयहरणस्स परं तिन्हं बंधाणं देइ देतं वा साइज्जइ ॥ ३८० ॥ जे भिक्खू रयहरणं अणिसद्वं धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ३८१ ॥ जे भिक्खू रयहरणं वोसट्टं धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ ३८२ ॥ जे भिक्खू रयहरणं अभिक्खणं २ अहि अहितं वा साइज्जइ ॥ ३८३ ॥ जे भिक्खू रयहरणं उस्सीसमूले ठवेइ ठतं वा साइज्जइ ॥ ३८४ ॥ जे भिक्खू रयहरणं तुयट्टेइ तुयट्टेतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ ३८५ ॥ णिसीहऽज्झयणे पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ ५ ॥