Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ १० : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक २५. नगरकोटकांगड़ामहातीर्थ— हिमाचल प्रदेश के जैनतीर्थ, जिसे उत्तरी भारत का शत्रुञ्जय तीर्थ कहा जाता है, पर भँवरलालजी नाहटा की यह शोध पुस्तक बंसीलालजी कोचर शतवार्षिकी अभिनन्दन समिति द्वारा प्रकाशित है। २६. श्रीस्वर्णगिरिजालोर- यह कृति १०८ पृष्ठों में लिखकर भंवरलाल जी नाहटा ने प्राकृत भारती अकादमी जयपुर और बी० जे० नाहटा फाउण्डेशन, कलकत्ता से ई०सन् १९९५ में प्रकाशित करायी। २७. भगवान्महावीरका जन्मस्थान "क्षत्रियकुण्ड'' - तीर्थ की प्रामाणिकता पर शोधपरक यह पुस्तक श्री अगरचन्द जी नाहटा के साथ भँवरलालजी नाहटा ने लिखी व महेन्द्र सिंघी द्वारा वीर निर्वाण संवत् २५०० में यह प्रकाशित हुई। २८. श्रीगौतमस्वामीका जन्मस्थान 'कुण्डलपुर' (नालन्दा)-- जैन पुरातत्त्व साहित्य व प्रमाण पुरस्सर तीर्थभूमि नालन्दा पर सचित्र पुस्तक का लेखन भँवरलालजी नाहटा ने किया व महेन्द्र सिंघी ने वीर निर्वाण संवत् २५०१ में इसे प्रकाशित किया। २९. वाराणसी-जैनतीर्थ- उत्तर प्रदेश की धर्मभूमि वाराणसी पर प्रस्तुत पुस्तक भँवरलालजी नाहटा द्वारा लिखित १७ पृष्ठीय कृति है, जो वीर निर्वाण संवत् २५०२ में प्रकाशित हुई। ३०. काम्पिल्यपुरतीर्थ– १३वें तीर्थङ्कर विमलनाथ भगवान् की कल्याणक भूमि काम्पिल्य पांचाल देश की राजधानी पर एक जैन शोधार्थी की एक नजर की प्रतिबिम्बरूपी इस पुस्तक में धर्म/पुरातत्त्व, जैन विभूतियों की तपोभूमि व विचरणभूमि पर विस्तृत प्रकाश लेखक भँवरलालजी नाहटा ने डाला है। यह कृति श्री जैन श्वेताम्बर महासभा (हस्तिनापुर) उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित है। ३१. महातीर्थश्रावस्ती- तीर्थङ्कर भगवान् सम्भवनाथ की चार कल्याणक भूमि और गौतम बुद्ध की तपस्यास्थली सावत्थी (बहराइच-बलरामपुर से १५ किलोमीटर दूर) जैन तीर्थ पर ४० पृष्ठों में भँवरलालजी नाहटा द्वारा लिखित यह ग्रन्थ पंचाल शोध संस्थान द्वारा १९८७ ई०/विक्रम संवत् २०४४ में प्रकाशित है। ३२. विचाररत्नसार- प्रस्तुत ग्रन्थ उपाध्याय देवचन्द्र की लेखनी की देन है। आचार्य हरिभद्र अपने युग के मूर्धन्य जैन साहित्यकार हुए। उनके परवर्तीकाल में हुए जैन साहित्यकारों की त्रिमूर्ति जैन/जैनेतर-साहित्य एवं समाज में भी सुप्रतिष्ठित हैं- आनन्दघन, यशोविजय के साथ उपाध्याय देवचन्द्र। उनका साहित्य आध्यात्मिक, आस्थाप्लावित, व्यवस्थामूलक और नैतिक पृष्ठभूमि से प्रतिष्ठित है। गद्य एवं पद्य- दोनों ही रूपों में निबद्ध कृतियाँ गृह्यतम सत्यों को उद्घाटित करने का उद्देश्य लिए लक्षित होती हैं। उक्त ग्रन्थ को राष्ट्रभाषा हिन्दी में सर्वसाधारण के लिए लाभदायक बनाने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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