Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ १० : प्रमण/अक्टूबर दिसम्बर/१९९५ राज्यकाल २४ वर्ष अर्थात् ३२६ से लेकर ३०२ ई० पू० तक रहा – इससे दोनों की समसामयिकता स्वतः स्पष्ट हो जाती है। आचार्य भद्रबाहु के समान आचार्य स्थूलभद्र भी चन्द्रगुप्त के समकालीन थे। पट्टावलियों के अनुसार स्थूलभद्र की दीक्षा वीर निर्वाण सं० १४६ में तथा स्वर्गवास वीर निर्वाण संवत् २१५ में हुआ। यह तिथि ३३५ ई० पू० से २६६ ई० पू० सिद्ध होती है। अर्थात् आचार्य स्थूलभद्र चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण के पूर्व ही दीक्षा ले चुके थे। इस आधार पर उनका नन्द सम्राटों के साथ सम्बन्ध भी स्पष्ट हो जाता है जिसकी ओर तित्थोगाली प्रकीर्णक में संकेत है। महावीर का निर्वाण संवत् ४८१ ई० पू० मानने पर चन्द्रगुप्त मौर्य का अपने समकालीन आचार्यों भद्रबाहु एवं स्थूलभद्र के साथ सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। ___इसी प्रकार पट्टावलियों में आचार्य सुहस्ति और मौर्य सम्राट सम्प्रति की समकालिकता मानी गयी है। आचार्य सुहस्ति का युगप्रधान आचार्य-काल वीर निर्वाण संवत् २१५ से २९१ तक माना गया है। महावीर की निर्वाण-तिथि ४८१ ई० पू० मानने पर यह २३६ से १९० ई० पू० निश्चित होती है। मौर्य नरेश सम्प्रति के राज्यकाल का वर्ष निश्चित नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि अशोक के बाद कौन राजा बना और कितने वर्ष तक राज्य किया। अशोक के अभिलेखों में तीवर का नाम आता है परन्तु अन्य स्रोतों से वह अज्ञात है। उसके पौत्र दशरथ के कुछ अभिलेख नागार्जुन पहाड़ियों की गुफाओं से प्राप्त हुए जिनमें वह आजीवकों को दान देते हुए प्रदर्शित है। साहित्यिक साक्ष्य अशोक के तीन पुत्रों – महेन्द्र, कुणाल और जालौक का उल्लेख करते हैं। वायु पुराण के अनुसार कुणाल ने आठ वर्ष राज्य किया। मत्स्य-पुराण में अशोक के उत्तराधिकारियों में दशरथ, सम्प्रति, शतधन्वा और बृहद्रथ का उल्लेख है। अत: यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि सम्प्रति ने कब और कितने वर्ष तक राज्य किया। प्रायः सभी साक्ष्य मौर्य वंश के अन्तिम नरेश के रूप में बृहद्रथ का नामोल्लेख करते हैं। जिसकी १८७ ई० पू० में हत्या कर दी गई। यह निश्चित है कि इसके पूर्व ही सम्प्रति का राज्यकाल रहा होगा। अत: इसकी अत्यधिक सम्भावना है कि आचार्य सुहस्ति जो २३६ से १९० ई० पू० तक युग प्रधान आचार्य रहे, निश्चित रूप से सम्प्रति के समकालीन रहे होगें। उपर्युक्त तर्कों के आलोक में जैन पट्टावलियों से भी महावीर के निर्वाण-काल को ४८१ ई० पू० मानने पर कोई व्यवधान नहीं पड़ता और चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ भद्रबाहु एवं स्थूलभद्र की तथा सम्प्रति एवं सुहस्ति की समकालिकता सिद्ध हो जाती है। अपने विद्वत्तापूर्ण लेख “भगवान महावीर की निर्वाण-तिथि पर पुनर्विचार" में प्रोफेसर सागरमल जैन ने पट्टावलियों तथा कल्पसूत्र एवं नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों में उल्लिखित आचार्यों के काल पर विचार किया है। लेखक ने मथुरा के अभिलेख में प्राप्त पाँच नामों को अपना आधार बनाया है। आर्य मंगु, आर्य नन्दिल एवं आर्य हस्ति का उल्लेख नन्दीसत्र की स्थविरावली में तथा आर्य कृष्ण और आर्य वृद्ध का नाम कल्पसत्र की स्थविराFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122