Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 49
________________ ४५ : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर /१९९५ लोगों को अनुमान हुआ । इन विद्वानों के प्रयासों से अनेक भारतीय विद्वान् भी इस ओर आकृष्ट हुए जिनमें प्रो० हीरालाल जैन, ए० एन० उपाध्ये, नाथूराम प्रेमी, मुनि पुण्यविजय, मुनि जिनविजय, अगरचंद नाहटा, एच० सी० भयाणी, आदि विद्वान प्रमुख हैं। भारतीय इतिहास की व्याख्या अथवा लेखन की दृष्टि से वैदिक और बौद्ध स्रोतों का जितना उपयोग विद्वानों ने किया है उसकी तुलना में जैन स्रोतों का उपयोग फिर भी कम हुआ । सी० एच० फिलिप्स ने 'हिस्टोरियेन्स ऑफ इण्डिया, पाकिस्तान एण्ड सिलोन' में वैदिक परम्परा के अलावा बौद्धों, चारणों, सिंहलियों और तमिलों के इतिहास-लेखन की चर्चा की है। उसके बाद मध्यकाल ( मुस्लिम इतिहास-लेखन) और आधुनिक काल के देशी-विदेशी इतिहासकारों पर अनेक लेख संकलित किये गये हैं, परन्तु प्रायः ५०० पृष्ठों की इस पुस्तक में जैन ऐतिहासिक स्रोतों एवं जैन इतिहासकारों पर एक भी स्वतंत्र लेख सम्मिलित नहीं किया गया है। इसी प्रकार ए० के० बॉर्डर ने 'ऐन इण्ट्रोडक्शन टू इण्डियन हिस्ट्रियोग्राफी' में बाण, वाक्पतिराज, पद्मगुप्त, कल्हण आदि के साथ जैन ऐतिहासिक स्रोतों का अति संक्षिप्त परिचय दिया है, किन्तु उसे भी विक्रमादित्य और उसकी तिथि का निर्धारण करने के लिए ही सम्मिलित किया गया है। डॉ० वी० एस० पाठक ने अपनी पुस्तक 'एन्शियेण्ट हिस्टोरियेन्स ऑफ इण्डिया' में बाण, कल्हण, बिल्हण, सोमेश्वर और जयानक को प्राचीन भारतीय इतिहासकारों के रूप में गिना है, जिसमें एक भी जैन इतिहासकार नहीं है। यही स्थिति कम ज्यादा आज भी बनी हुई है। डॉ० परमानन्द सिंह ने अपनी पुस्तक 'इतिहासदर्शन' में प्राचीन इतिहासकारों के रूप में भीष्म, शुक्र, बाण, कल्हण, बिल्हण और जयानक की चर्चा की है, किन्तु इसमें भी किसी जैन लेखक को सम्मिलित नहीं किया गया है। इस प्रकार इतिहास के प्रसिद्ध विद्वानों की उपेक्षा और उदासीनता के कारण जैन ऐतिहासिक स्रोतों का समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि जैन ऐतिहासिक स्रोतों का इतिहास-लेखन में उपयोग ही नहीं हुआ है। अनेक विद्वानों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। इसमें डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन का नाम सर्वप्रमुख है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'द जैन सोर्सेज ऑफ दि हिस्ट्री ऑफ ऐन्शियेण्ट इण्डिया' में जैन स्रोतों के आधार पर प्राचीन भारतीय इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर सम्यक् प्रकाश डाला। इसी प्रकार डॉ० गुलाबचन्द चौधरी ने 'पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ नॉर्दर्न इण्डिया फ्रॉम जैन सोर्सेज' में जैन स्रोतों के आधार पर उत्तर भारत के राजनीतिक इतिहास को प्रस्तुत करने का स्तुत्य प्रयास किया है। प्रो० के० डी० बाजपेयी ने 'भारतीय व्यापार के इतिहास' में आर्थिक इतिहास-लेखन में जैन स्रोतों का भी उपयोग किया है। डॉ० जगदीशचंद्र जैन की पुस्तक 'लाइफ इन ऐन्शियेण्ट इण्डिया ऐज डिपिक्टेड इन जैन कैनॉन्स' में जैन आगमों के आधार पर प्राचीन भारतीय समाज का वर्णन किया गया है। इन पुस्तकों में विद्वानों लेखकों ने इतिहास के किसी एक ही पक्ष को अपने अध्ययन का विषय बनाया। इसी प्रकार जैन ऐतिहासिक स्रोतों का किसी पक्ष विशेष के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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