Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ ५३ : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर /१९९५ अरिहन्तों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण, सम्बन्धी तथा कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि महापुरुषों के चरित्र थे। जैन मान्यतानुसार दृष्टिवाद का उच्छेद हो गया है। आर्यरक्षित ने उसका उद्धार धर्मकथानुयोग के अन्तर्गत किया था पर काल के प्रभाव से उसका भी उच्छेद हो गया। इसके बाद आचार्य कालक ने जैन परम्परागत कथाओं के संग्रह के रूप में प्रथमानुयोग के नाम से इस साहित्य का पुनरुद्धार किया । सदाचार प्राकृत कथा - साहित्य का काल ईसवी सन् की चौथी शताब्दी से लेकर सोलहवींसत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है। प्राचीन जैन साहित्यकारों ने कथा - साहित्य की अभिवृद्धि में उल्लेखनीय तथा सराहनीय योगदान दिया है। उनका कथा-साहित्य जैन जगत् की धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता एवं प्राणवत्ता का प्रतीक है। इसमें एक ओर भोग विरक्ति, संयम, की प्रतिध्वनियाँ हैं तो दूसरी ओर जीवन के शाश्वत सुख के स्वर भी मुखरित हुये हैं । यद्यपि यह भी सच है कि इन कथाओं की सामग्री से ऐतिहासिकता सिद्ध नहीं हो सकती तो भी इन कहानियों में वास्तविकता का गहरा पुट है। जैन लेखकों ने अपने युग के समाज-मूल्यों की अपेक्षा से समाज को स्वस्थ एवं गतिशील दिशा प्रदान करने का दायित्व निभाया है। उन्होंने जनसामान्य की अनुभूतियों से संस्पर्श पाकर विभिन्न प्रान्तों, नगरों, गाँवों की लोकचेतना का साहित्यीकरण किया है। पुराण- पुरुषों की मौखिक कथाओं को धर्म, दर्शन और तत्त्वों का पुट देकर एक नया स्वरूप प्रदान किया है। वास्तव में देखा जाये तो यह कथा ग्रन्थ भारतीय संस्कृति के कोष हैं जिनमें कथाकारों ने विभिन्न दार्शनिक और धार्मिक विषयों की गम्भीर गुत्थियों को तो सुलझाया ही है पर साथ ही सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कलापरक विषयों की भी विस्तृत चर्चा की है। . डॉ० विन्तरनित्स के शब्दों में कहा जाये तो जैन साहित्य में प्राचीन भारतीय कथासाहित्य के अनेक उज्ज्वल रत्न विद्यमान हैं। डॉ० जॉन हर्टल कहते हैं इन विज्ञों ने हमें कितनी ऐसी अनुपम भारतीय कथाओं का परिचय कराया है जो हमें अन्य किसी स्रोत से उपलब्ध नहीं होती । ३ २. आचार्य संघदास गणि की वसुदेवहिंडी में आख्यायिका पुस्तक, कथा-विज्ञान और व्याख्यान का उल्लेख आया है। आचार्य ने कथाओं के दो भेद किये हैं १. चरितकथा, . कल्पितकथा । दृष्ट, श्रुत या अनुभूत कथा को चरित कथा कहा गया है और विपर्यय युक्त कुशल व्यक्तियों द्वारा अपनी मति के अनुसार कही गयी कथा को कल्पित कथा कहा गया । दशवैकालिक में सामान्य दृष्टि से कथा के तीन भेद किये गये हैं - १. अकथा, २. कथा, विकथा | मिथ्यात्व के उदय से अज्ञानी मिथ्यादृष्टि जिस कथा का निरूपण करता है वह संसार परिभ्रमण का कारण होने से अकथा कहलाती है। तप, संयम, दान, शील आदि से पवित्र व्यक्ति लोक-कल्याण के लिये जिस कथा का निरूपण करते हैं वह कथा कही जाती है। प्रमाद, कषाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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