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७१ : श्रमण/अक्टूब-दिसम्बर/१९९५
जैन दर्शन सम्बन्धी अन्य विवरण भी समाहित हैं। इस ग्रंथ में दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार इन पाँच आचारों का विस्तार से विवेचन किया गया है। यहाँ नियम शब्द का अर्थ मोक्षमार्ग है। रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है। इसमें शुद्धात्मा की आराधना को ही परमश्रेय माना गया है। इस तरह से यह एक पूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है।
श्री राजमल पवैया जी ने नियमसार ग्रन्थ को काव्यरूप प्रदान कर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने आत्मविषयक दुरूह तत्त्वों का निरूपण बड़े सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। यह आशा की जा सकती है कि इस ग्रन्थ के अध्ययन से जनसामान्य में अध्यात्म रुचि का विकास होगा।
__ - डॉ० रज्जन कुमार
साभार स्वीकार पुस्तक - ग्रहशान्ति ( पूजा-विधि-सहित) लेखक - श्री भद्रबाहु स्वामी सम्पादक - श्री विजय कुमार जैन दुग्गड़ अम्बालवी प्रकाशक - श्री आत्मवल्लभ जैन धार्मिक पाठशाला, अम्बाला शहर
(हरियाणा) - १३४ ००२ प्रथम संस्करण – १९९५, मूल्य - रु० १०.०० पुस्तक - आत्मवल्लम संगीत सुधा लेखक - प्रो० रामकुमार जैन 'राम' प्रकाशक - श्री आत्मवल्लभ जैन धार्मिक पाठशाला, वल्लभ निकेतन, अम्बाला
शहर (हरियाणा) प्रथम संस्करण - १९९५, मूल्य - रु० २०.०० पुस्तक - सागर पे नज़र हो सदा संकलन एवं सम्पादन - महेन्द्र कुमार मस्त प्रकाशक - सदाराम सागरचन्द्र सुरेन्द्रकुमार जैन ट्रस्ट, देवदर्शन धूप इण्डस्ट्रीज,
३२४ इण्डस्ट्रियल एरिया-११, चण्डीगढ़।
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