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७८ : अमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५
श्रीमती सुधा राजकुमार बड़जात्या दिवंगत राजश्री प्रोडक्शन्स के जाने माने फिल्म प्रोड्यूसर श्री सूरज बड़जात्या की माताश्री एवं श्री सौभाग्यमल जी पाटनी की सुपुत्री श्रीमती सुधा राजकुमार बड़जात्या का दिनांक २३ अक्टूबर १९९५ को बम्बई में निधन हो गया। आप अत्यन्त धर्मपरायण एवं उदारमना थीं। आपने अपने जीवनकाल में साढ़े पाँच लाख रुपये धार्मिक कार्यों हेतु अपने पिताश्री को दिए थे। पिताश्री श्री सौभाग्यमल पाटनी ने उसमें साढ़े पाँच लाख रुपये और मिलाकर कुल ग्यारह लाख रुपये का एक ट्रस्ट स्थापित किया है जो धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित होगा।
श्री छगनलाल जी वैद दिवंगत श्री जैन सभा एवं साधुमार्गी जैन संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री छगनलाल जी वैद का पिछले दिनों देहावसान हो गया। उनकी स्मृति में दि० २३ अगस्त को श्री श्वे० स्थानकवासी जैन सभा के सुकियसलेन, कलकत्ता स्थित सभागार में एक स्मृतिसभा आयोजित की गयी जिसमें समग्र जैन समाज के प्रतिनिधियों ने उन्हें श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए उनके स्वर्गवास को. एक अपूरणीय क्षति बतलाया।
पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश सम्बधी सूचना
जैन विद्या संस्थान के अन्तर्गत अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा “पत्राचार अपभ्रंश सर्टीफिकेट पाठ्यक्रम" का चौथा सत्र १ जनवरी १९९६ से प्रारम्भ हो रहा है जिसमें हिन्दी तथा अन्य भाषाओं एवं विषयों के प्राध्यापक, शोधार्थी एवं संस्थाओं में कार्यरत विद्वान सम्मिलित हो सकेंगे। इस सम्बन्ध में नियमावली तथा आवेदन पत्र, अकादमी कार्यालय, दिगम्बर जैन नसियां भट्टारक जी, सवाई मानसिंह मार्ग, जयपुर से प्राप्त किये जा सकते हैं। कार्यालय में आवेदन पत्र पहुँचने की अन्तिम तिथि १५ अक्टूबर १९९५ निर्धारित की गयी है।
विद्यापीठ के प्रांगण में यह प्रसन्नता का विषय है कि अगस्त, १९९५ से विद्यापीठ के सभी विभागों में शिक्षण-कार्य प्रारम्भ हो गया है। सभी विभागों में अपेक्षित संख्या में विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। हमारे लिये यह भी प्रसन्नता का विषय है कि इस वर्ष विचक्षणमणि, बहुश्रुत साध्वी श्री मणिप्रभाश्री जी एवं सज्जनमणि साध्वी श्री शशिप्रभाश्री जी की सात शिष्याएँ - साध्वी श्री प्रियदर्शनाश्री जी, साध्वी श्रीविद्युतप्रभाश्री जी, साध्वी श्रीमृदुलाश्री जी, साध्वी श्रीसौम्यगुणाश्री जी, साध्वी श्री अतुलप्रभाश्री जी, साध्वी श्रीस्थितप्रज्ञाश्री जी और साध्वी श्रीसिद्धप्रज्ञाश्री जी अध ययनार्थ विद्यापीठ में निवास कर रही हैं। साध्वी श्रीविद्युतप्रभाश्री जी 'जीवसमास' का अनुवाद एवं सम्पादन कर रही हैं तथा साध्वी श्री सौम्यगुणाश्री जी 'विषिमार्गप्रपा' पर पी-एच० डी० कर रही हैं। साध्वियों के इस आगमन एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के प्रारम्भ हो जाने से संस्थान की गतिविधयों में एक नवचेतना का संचार हुआ है।
साध्वी वर्ग, छात्र एवं अध्यापक सभी निष्ठा से अपने कार्य में जुड़े हुए हैं।
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