Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 64
________________ ६० : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५ ४. प्रतिमुख – इसमें अन्धक वृष्णिवंश का परिचय देते हुये वसुदेव के पूर्वभव का कथा के साथ सम्बन्ध जोड़ा गया है। वसुदेव की कथा आरम्भ करते हुये बताया गया है कि सत्यभामा के पुत्र भानु के विवाह के लिये १०८ कन्यायें एकत्रित की गयी थी किन्तु उनका विवाह जाम्बवती के पुत्र शाम्ब से कर दिया गया था। इस पर प्रद्युम्न ने अपने दादा वसुदेव पर कटाक्ष करते हुये कहा कि शाम्ब ने तो घर बैठे १०८ कन्याओं से विवाह कर लिया है, आप तो १०० विवाहों के लिये १०० वर्ष घूमते रहे। इसके प्रत्युत्तर में अपनी आत्मकथा आरम्भ करते हुये वसुदेव ने कहा शाम्ब तो कुएँ का मेढक है जो सरलता से प्राप्त भोगों से सन्तुष्ट हो गया है। मैंने तो १०० वर्ष पर्यटन करते हुये अनेक सुख-दुःखों का अनुभव किया है। इस प्रकार वसुदेवहिंडी कथा का आरम्भ होता है । २४ ५. शरीर – हिण्डन् का अर्थ है भ्रमण, वसुदेवहिंडी के २९ लम्बों में वसुदेव के बृहत्तर भारत के भ्रमण का उल्लेख है । २९ लम्बों में वसुदेव के २६ विवाहों का उल्लेख है । वसुदेव के रूप सौन्दर्य पर मोहित होकर नगर की स्त्रियाँ अपनी सुधबुध खो बैठती थीं । नागरिकजनों के अनुरोध पर वसुदेव के बड़े भाई समुद्रविजय ने वसुदेव के नगर भ्रमण पर प्रतिबन्ध लगा दिया । वसुदेव का आत्म-सम्मान आहत हो गया। उसने रुष्ट होकर गृह त्याग कर दिया और परिवारजनों में ऐसा भ्रम पैदा कर दिया कि उन्होंने उसे मृतकं समझ लिया। अपने यात्राकाल में अनेकों साहसपूर्ण कार्य करते हुए वे नई-नई जगह पहुंचते हैं और अनेक विद्याधर और मानवी कन्याओं से विवाह करते हैं जिनमें श्यामा, विजया, श्यामली, गन्धर्वदत्ता, नीलयशा, सोमश्री, मित्राश्री, धनश्री, कपिला, पद्मा, अश्वसेना, पुण्ड्रा, वेगवती, मदनवेगा, बालचन्द्रा, बन्धुमति, प्रियंगुसुन्दरी, केतुमति, प्रभावती, भद्रमित्रा, सत्यरक्षिता, पद्मावती, ललितश्री, रोहिणी और देवकी से विवाह का उल्लेख हुआ है। रोहिणी से विवाह के समय उनकी अपने बड़े भाई समुद्रविजय से मुलाकात हो जाती है। उनके अनुनय-विनय करने पर वसुदेव अपनी सब पत्नियों के साथ द्वारका लौट आए और परिवारजनों के साथ पूर्ववत् रहने लगे। १ वसुदेवहिंडी में केवल वसुदेव के भ्रमण का ही वृत्तान्त नहीं किन्तु ऐसे अनेक कथानक हैं जो मनोरंजक होने के साथ-साथ लोक-संस्कृति के अनेक पक्षों का भी दिग्दर्शन कराते हैं। मूलकथा को प्रभावोत्पादक बनाने के लिये अवान्तर कथाओं का सुन्दर जाल बुना गया है। विष्णुकुमार चरित्र, अथर्ववेद की उत्पत्ति, ऋषभस्वामी का चरित्र, आर्य-अनार्य वेदों की उत्पत्ति, सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा, सुभौम कुन्थु स्वामी का चरित्र, रामायण, शान्ति- नाथ तीर्थङ्कर का चरित्र, अमरनाथ तीर्थङ्कर का चरित्र, मेघरथ का आख्यान, हरिवंश की उत्पत्ति, जमदग्नि- परशुराम की कथा, सगर पुत्रों की कथा आदि पौराणिक आख्यानों का उल्लेख किया गया है जिसके कारण कथा का विस्तार बहुत अधिक हो गया है। उपसंहार संघदासगण ने कथा का उपसंहार नहीं किया। इस कमी को धर्मसेनगणि ने पूर्ण किया है। कथा के उपसंहार में बताया गया है कि वसुदेव, सोमसिरि के अपहरणकर्ता मानसवेग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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