________________
४९ : ब्रमण/अक्टूब-दिसम्बर/१९९५
रूपान्तर है। यह ग्रंथ जैनधर्म का इतिहास तो प्रस्तुत करता ही है साथ ही साथ इसमें अवन्ति का इतिहास तथा महावीर से लेकर गुप्तों तक का विवरण मिलता है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थ का काल और तत्कालीन प्रमुख राजाओं का वर्णन किया गया है जिससे ग्रन्थ का महत्त्व बढ़ जाता है। इस ग्रंथ में महावीर से लेकर लोहाचार्य तक की अविच्छिन्न गुरु-परम्परा का उल्लेख है जो श्रुतावतार आदि अन्य ग्रंथों में मिलता है किन्तु उसके बाद की गुरु-परम्परा इस ग्रन्थ के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं प्राप्त होती है। इसलिए इसका जैन धर्म के इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। इसमें प्रमुख वंशों और उसके राजाओं का वर्णन भी मिलता है। हेमचंद्र ने त्रि० श० पु० च० में ६३ महापुरुषों का चरित प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ का महावीर चरित अत्यन्त उपयोगी है। परिशिष्टपर्वन् मौर्यकाल तक के मगध के राजाओं का काल सहित उल्लेख करता है जो भारतीय काल-गणना की दृष्टि से उपयोगी है। गुर्जर देश के इतिहास को प्रस्तुत करने वाले जैन स्रोत के रूप में द्वयाश्रय महाकाव्य कुमारपालचरित ( हेमचंद्र ), कुमारपालप्रतिबोध ( सोमप्रभ ), कीर्ति-कौमुदी ( सोमेश्वर ) एवं सुकृतसंकीर्तन ( अरिसिंह ) मुख्य ग्रंथ है। सोमेश्वर ने कीर्ति-कौमुदी में वस्तुपाल के जीवन-चरित के साथ चौलुक्यों के इतिहास को आमुख के रूप में दे दिया है। इन जैन ग्रंथों के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है कि जहाँ नवीं शताब्दी से पूर्ववर्ती ग्रन्थ भारत के सामान्य इतिहास से सम्बद्ध हैं और प्राय भिन्न-भिन्न प्रदेशों का इतिहास वर्णित करते हैं जिनमें मगध के राजवंश, सातवाहनवंश, शकवंश, गुप्त- वंश तथा कान्यकुब्ज वंश मुख्य हैं। वहीं ९ वीं शती से बाद के ग्रन्थ पश्चिम भारत पर प्रमुख रूप से केन्द्रित हो जाते हैं और वे मालवा, राजस्थान और विशेष रूप से गुजरात का ही इतिहास प्रस्तुत करते हैं।
चतुर्थ अध्याय में 'जैन प्रबन्धों' का अध्ययन किया गया है। जैन साहित्य में प्रबन्ध सरल संस्कृत गद्य-पद्य में लिखा ऐतिहासिक अर्द्ध-ऐतिहासिक कथानक है जो शासक, उससे सम्बद्ध किसी घटना या किसी तीर्थ आदि से सम्बन्धित ऐतिहासिक तथ्य पर लिखे गये हैं। इस अध्याय में हमने चार मुख्य प्रबन्धों - प्रभाचन्द्र कृत प्रभावकचरित, मेरुतुंगकृत प्रबन्ध-चिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश और पुरातनप्रबन्धसंग्रह को ही लिया है। इन प्रबन्धों में सर्वाधिक द्रष्टव्य प्रभावकचरित है, जो कि सातवाहन, विक्रमादित्य, हर्ष तथा कान्यकुब्ज के यशोवर्मन, नागभट्ट, भोज तथा धर्मपाल का उल्लेख करता है। वस्तुतः प्रभाचन्द्र की रुचि उन प्रसिद्ध जैन आचार्यों के कथानकों में है जो इन राजाओं से सम्बद्ध समझे जाते हैं। प्रबन्धचिन्तामणि में मेरुतुंग, विक्रमादित्य, सातवाहन एवं भोज प्रथम से सम्बन्धित कथानकों का वर्णन करता है, तत्पश्चात् चापोत्कटों से आरम्भ कर गुर्जर इतिहास का विस्तृत विवरण देता है। इसमें अरबों द्वारा वलभीभंग का वर्णन महत्त्वपूर्ण है जो अन्यत्र एकाध स्थलों पर ही मिलता है। इसी प्रकार प्रबन्धकोश और पुरातनप्रबन्धसंग्रह में भी अनेक ऐतिहासिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
___अन्य साहित्यिक स्रोत' नामक पाँचवें अध्याय में प्रशस्ति, पट्टावली, स्थविरावली, Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org