Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ ४८ : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५ स्तवन और सनद-पत्र आदि उपवर्गों में रखकर उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। पुरातात्त्विक स्रोत के रूप में विविध प्रकार के अभिलेखों का अध्ययन किया है जो तत्कालीन इतिहास एवं सांस्कृतिक लेखन के सर्वाधिक प्रामाणिक साक्ष्य हैं। आगम और आगमिक व्याख्या-साहित्य में उपलब्ध सूचना' नामक दूसरे अध्याय में प्रमुख जैन आगमों ( श्वेताम्बर मान्य ), आगमों पर रचित आगमिक व्याख्याओं आदि का अनुशीलन किया गया है। इसमें से कुछ प्रमुख ग्रंथों से प्राप्त ऐतिहासिक महत्त्व या जैनधर्म के इतिहास से सम्बन्धित सूचनाओं का विश्लेषण किया गया है। कारण कि ४५ आगमों और उन रचित शताधिक व्याख्या-ग्रन्थों को एक ही अध्याय में संकलित कर उनका विश्लेषण कर पाना सम्भव नहीं था। अत: हमने कुछ प्रमुख ग्रन्थों को ही चुना, शेष का उल्लेखमात्र कर दिया है। जैन-आगमों में कहीं-कहीं महत्त्वपूर्ण सूचना प्राप्त होती है। आगमों में प्राचीनतम ग्रंथ आचाराङ्ग ( ई० पू० चतुर्थ शताब्दी ) में महावीर के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। व्याख्याप्रज्ञप्ति ( ई० पू० प्रथम शताब्दी ) में इनमें कुछ परिवर्तन-परिवर्द्धन कर दिया जाता है, जिससे महावीर सम्बन्धी इतिहास के कथानक में परिवर्तन होता है जिसका परिपाक जिनचरित्र ( कल्पसूत्र का एक भाग ) में होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्राचीन काल-चक्र का इतिहास वर्णित है। स्थानाङ्ग में भारत में वर्तमान युग के सर्वभौम सम्राटों का वर्णन मिलता है। समवायाङ्ग ( एक प्रकार से स्थानाङ्ग का परिशिष्ट ) में मनुओं का आरम्भ पूर्ववर्ती युग से अनुसृत किया गया है। नन्दीसूत्र, कल्पसूत्र और आवश्यकसूत्र में जैन आचार्यों की सूची दी हुई है, जो जैनधर्म के इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण है। 'पुराण एवं चरित काव्यों में उपलब्ध ऐतिहासिक सूचना' नामक तीसरे अध्याय में प्रमुख जैन पुराणों एवं चरित ग्रन्थों में वर्णित सूचनाओं का विश्लेषण किया गया है। इस अध्याय में इन ग्रन्थों का वर्णन कालक्रम के अनुसार किया गया है। इसमें प्रबन्ध साहित्य के अतिरिक्त जो भी ग्रन्थ हैं -- जैसे ऐतिहासिक काव्य, पुराण ग्रंथ आदि उन्हें शामिल किया गया है। विमलसूरि कृत पउमचरिय ( ई० सन् प्रथम ) में राम की कथा भिन्न रूप से प्राप्त होती है। इसके अनुसार रावण एक विद्याधर था जो अतिमानवीय शक्तियाँ अर्जित कर देवताओं का प्रतिस्पर्धी बन गया था। वह धार्मिक दृष्टि से जैन था, किन्तु वह इतना मूर्ख था कि राम की पत्नी का अपहरण किया। इसमें यह बताया गया है कि वास्तविक राक्षस तो वे हैं जो पशु-बलि का अनुष्ठान करते हैं। यह ग्रन्थ तत्कालीन अवस्था का भी पूर्ण चित्रण करता है, साथ ही इसमें कई प्रमुख वंशों, उसकी उत्पत्ति तथा उस वंश के प्रमुख व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही इसमें वाकाटक युग की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक सामग्री मिलती है। यह वर्णन प्राय: ब्राह्मण स्रोतों में भी प्राप्त होता है। पुरातन आख्यानों पर आधारित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संघदास का वसुदेवहिण्डी ( वसुदेव का भ्रमण ) है। इसमें इतिहास को एक नया रूप दे दिया गया है। सत्कर्मों और दुष्कर्मों के परिणाम को दर्शाकर कथानकों को उपदेशपरक बनाया गया है। जिनसेन का हरिवंशपुराण, महाभारत की कथा का सबसे प्रसिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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