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श्रमणा
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तरंगलोला और उसके रचयिता से सम्बन्धित
भ्रान्तियों का निवारण
पं० विश्वनाथ पाठक
विद्वानों का यह निश्चित मत है कि गुणाढ्य की बड्डकहा ( बृहत्कथा ) के समान पालित्त ( पादलिप्त ) की तरंगवईकहा ( तरंगवती कथा ) भी पूर्णत: विलुप्त हो चुकी है। उपलब्ध तरंगलोला उसी अनुपलब्ध कृति का सारांश है। 'तरंगलोला' और 'तरंगवती' के सम्बन्ध में डॉ. जगदीश चन्द्र जैन 'प्राकृत जैन-कथा साहित्य' में लिखते हैं -
तरंगवती ... ... ... ... पादलिप्त की कृति है, यह अनुपलब्ध है। "... ... ... ....... तरंगवती का संक्षिप्त रूप तरंगलोला ( संखित्ततरंगवई ) के नाम से प्रसिद्ध है जिसकी रचना आचार्य वीरभद्र के शिष्य नेमिचन्द्र ने की है।” ( पृ० २६-२७ )
डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री का अभिमत यह है -
“तरंगवती एक प्राचीन कृति है। यद्यपि यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, पर यत्र-तत्र उस के उल्लेख अथवा तरंगलोला नाम का जो संक्षिप्त रूप उपलब्ध है, उससे ज्ञात होता है कि यह धार्मिक उपन्यास था।... ... ... ... ... ... तरंगवती आज मूल रूप में प्राप्त नहीं है। उसका संक्षिप्त रूप जिसका दूसरा नाम तरंगलोला है, प्राप्य है। इस ग्रन्थ को वीरभद्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्र गणि ने तरंगवती कथा के लगभग १०० वर्ष पश्चात् यश नामक अपने शिष्य के स्वाध्याय के लिये लिखा है। ... ... ... ... नेमिचन्द्र के अनुसार पादलिप्त ने तरंगवती की कथा देशी भाषा में की थी।” (पृ० ४५०-४५१ ) तरंगवती की गुजराती भूमिका में डॉ० हीरालाल रसिकदास कापडिया ने यह मत व्यक्त किया है कि तरंगवती पूर्णत: नष्ट हो गई है। (पृ० १५ ) तरंगलोला उसका सारांश है। तरंगलोला की प्रारम्भिक गाथाओं के आधार पर तरंगवती कथा के प्राकृत में रचित होने का निश्चय होता है -
.' “आ ऊपर थी तरंगवई पाइय मां हती ए नक्की थाय छ।” ( पृ० १९ ) डॉ० कापडिया यह मानते हैं कि रचनाकार का उल्लेख करने वाली गाथायें अशुद्ध हैं, अत: उसके सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, परन्तु यह निश्चित है कि तरंगलोला नेमिचन्द्र या उनके किसी शिष्य की रचना है। ( भूमिका, पृ० २१ ) जीवण भाई छोटा भाई झवेरी द्वारा प्रकाशित और श्री कस्तूरविजय जी द्वारा सम्पादित तरंगलोला के प्रारम्भिक पृष्ठ पर हाईयपुरीयगच्छीय वीरभद्रसूरिवरसीसरयणगणिसिरिनेमिचंदस्स जसेण ( ? )
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