Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 42
________________ ३८ : ब्रमण/अक्टूब-दिसम्बर/१९९५ जैसे - चारित्र से साधु की शोभा होती है, ज्ञान से पंडित की शोभा होती है, विनय से शिष्य की शोभा होती है, वैसे ही नारी से गृहस्थी की शोभा होती है। नारी संयम का पाठ पढ़ाने वाली संस्था है। आगम महान सतियों के इतिहास से भरा पड़ा है। समस्त मानव-जाति के कल्याणार्थ वैभव, विलास एवं पुरुष के शासन को ठुकराकर संयमी जीवन के कटीले पथ पर नारियाँ निकल पड़ी थीं । सती स्त्रियाँ धर्म-पथ से विचलित नहीं होती। रावण के पास रहकर भी सीता ने पतिव्रत धर्म नहीं छोड़ा और जब श्रीरामचन्द्र ने लोकापवाद से सीता का परित्याग कर दिया व सेनापति कृतान्तवक्र उन्हें वन में छोड़कर आने लगा, तब सीता ने उसे जो उपदेश दिया वह चिरस्मरणीय है। उसने कहा"श्रीराम से कहना कि लोकोपवाद-भय से जैसे मुझे छोड़ दिया वैसे कभी धर्म का परित्याग न करें।१८ स्त्रियाँ धर्म से कहीं अधिक निकट होती हैं। स्त्रियों के कोमल स्वभाव के कारण ही धर्म गतिमान होता आया है। भगवान महावीर के समय में अध्यात्म क्षेत्र में नारियों के बढ़ते कदम सक्रिय रूप से वृद्धि को प्राप्त हो रहे थे। सती अञ्जना, चन्दना, चैलना आदि अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने धर्म के पथ पर चलकर यह सिद्ध कर दिया कि धर्म के उत्तरदायित्व की स्वामिनी नारी भी है। नारी को दया, क्षमा, सहिष्णुता की एक अपूर्व मूर्ति कह सकते हैं। क्रूर से क्रूर प्राणी पर भी दया करना इसका स्वभाव है। सीता को जटायु और वन पक्षियों पर भी इस प्रकार की करुणा आती थी कि वह उनका भी पुत्रवत् पालन करती थी। नारी शास्त्रों का भी अध्ययन करती थी। नारियाँ सदुपदेश द्वारा लोगों को सन्मार्ग पर लाती थीं और स्वयं दीक्षा लेकर अन्य स्त्रियाँ को भी दीक्षित करती थीं। बाहुबलि जी को मानरूपी ऐरावत गज से उतारने के लिये ब्राह्मी और सुन्दरी की भूमिका स्मरणीय है। रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास भी नारी की ही प्रेरणा से महान बने। नारी जीवन के साफल्य की कुंजी है - उसका स्वार्थ-त्याग, इन्द्रिय-निरोध, भोग-लिप्सा का परित्याग और कषायों की मन्दता। नारी का अभ्युदय मुख्यतः उसके शील धर्म में समाहृत है। शीलवती नारी के प्रभाव से सर्प हाररूप परिणित हो गया, अग्निकुण्ड जल सरोवर रूप परिणित हो गया अर्थात् कोई कार्य ऐसा नहीं जो नारी के लिये असम्भव है।" सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक, धार्मिक, शिक्षण, कला, साहित्य, गायन, वादन आदि सभी क्षेत्रों में स्त्रियों ने अपनी शक्ति दिखाई है। नारी के लिये कह सकते हैं - नारी जगत् की, प्रकृति-पुरुष की जन्मदात्री, घर की लक्ष्मी, शिक्षा की सरस्वती, संस्कार पालने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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