Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 46
________________ श्रमण यह कौन सा कालचक्र चल रहा है प्रभु ! भेड़ बकरियों की तरह पलते हुए लोग रात और दिन की मूल्यवत्ता खोकर निशाचर की तरह देश की आधी से अधिक आबादी रेंग रही है. - बस स्टैण्डों पर रेलवे स्टेशनों पर पार्क में / पगडंडियों पर ट्रेनों की गतिशीलता से जुड़कर किस बेचैनी में भाग रही है देश की आधी से अधिक आबादी ! कालचक्र यह आपा-धापी एक दूसरे को मात करके / पछाड़ करके / ताड़ करके -- भागने की बेचैनी में कहाँ है समता का मूल्य ? कैसे लागू होगा अहिंसा का सिद्धान्त ? Jain Education International For Private & Personal Use Only डॉ. धूपनाथ प्रसाद * www.jainelibrary.org

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