Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 24
________________ २० : ब्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५ इयराण हियट्ठाए मा हा ( हो ) ही सव्वहा वि वोच्छ (च्छे ) ओ __ एवं विचिंति ऊणं खामे ऊणं तयं ए सूरिं ।। ९ ।। __ इन दोनों गाथाओं की व्याख्या के पूर्व उपलब्ध पाठ के औचित्य का परीक्षण कर लेना भी आवश्यक है। विद्वान सम्पादक ने नवम गाथा के चतुर्थ पाद में 'हा' ( होही क्रिया का आद्यवयव ) और 'च्छ' (वोच्छेओ का मध्यावयव ) का शुद्धपाठ कोष्ठक में क्रमश: 'हो' और ‘च्छे' देकर अध्येताओं को उपकृत किया है। सम्भवत: उनका ध्यान अष्टम गाथा पर नहीं गया होगा। उसमें एक छोटी सी अशुद्धि शेष रह गई है जिसके कारण छन्द के प्रथम पाद में एक मात्रा कम हो गई है और आर्थिक अवरोध भी उत्पन्न हो गया है। । उक्त गाथा में 'उच्चेजणं' शब्द का प्रयोग है। इस विकृत पाठ को यदि यथावत् रहने दें तो आठवीं गाथा की संस्कृतच्छाया यह होगी - तत: 'उच्चेजणं' गाथा: पादलिप्तेन रचिताः। देशीपदानि मुक्त्वा संक्षिप्ततरीकृता एषा।। इसका अन्वय यह होगा - ततः पादलिप्तेन रचिता: गाथा: 'उच्चेजणं' देशीपदानि मुक्त्वा एषा संक्षिप्ततरी कृता। _इस वाक्य में 'उच्चेजणं' के आगे और पीछे के शब्दों का अर्थ तो स्पष्ट है परन्तु दोनों भागों का सम्बन्ध टूट गया है। सम्बन्ध-विच्छेद का कारण है – 'उच्चेजणं'। यह किसी सार्थक शब्द का लिपिभ्रष्ट रूप है। यदि इसे संज्ञा मानते हैं तो ‘पादलिप्तेन रचिता: गाथा:' से कोई तालमेल नहीं बैठता है। अनुस्वारान्त होने के कारण यह न तो बहुवचन स्त्रीलिंग गाथा का विशेषण बन सकता है और न तृतीयान्त पादलिप्तेन का। प्राकृत में कथञ्चित् ‘पालित्तएण' ( पादलिप्तेन ) का विशेषण बन जाने पर भी अन्वय की बाधा यथावत् रहेगी। अव्यय और सर्वनाम के रूप में भी इसका उपयोग सम्भव नहीं है, क्योंकि उस दशा में भी वांछित क्रिया के अभाव में आधा वाक्य निरर्थक रह जायेगा। पालित्तएण रइयाओ गाहाओ' ( पादलिप्तेन रचिता: गाथा: ) 'उच्चेजणं' यह एक अपूर्ण एवं साकांक्ष वाक्य है जिसकी आकांक्षा क्रिया से ही पूर्ण हो सकती है। गाथा में तीन क्रियाएँ उपलब्ध हैं -- रइया, मोत्तुं और कया। इनमें 'रइया' 'गाहा' से 'मोत्तुं' 'देसीपयाई' से और 'कया' ‘एसा' से अन्वित है। क्रियाओं के आध गार पर यह गाथा निम्नलिखित दो ऐसे वाक्य खण्डों में विभक्त हो जाती है जिनमें परस्पर कोई भी सम्बन्ध नहीं है - १. पादलिप्तेन रचिता: गाथा: 'उच्चेजणं'। ( पादलिप्त के द्वारा रचित गाथा में पादलिप्त रचित गाथाओं को ) ___२. देशीपदानि मुक्त्वा एषा संक्षिप्तरीकृता। ( देशी पदों को छोड़कर यह संक्षिप्ततर कर दी गई है) इन दोनों खण्डित और अखण्डित वाक्योंको परस्पर सम्बद्ध करने के लिये एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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