Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ २३ : अमण/अक्टूबसदिसम्बर/१९९५ की भरमार न होती। यहाँ पद शब्द का अर्थ वाक्य और देशी का अर्थ प्रान्तीय भाषा है ( देखिये, पाइयसहमहण्णव ) सखित्ततरंवई ( तरंगलोला ) की गाथा संख्या के सम्बन्ध में भी भ्रम है। प्राय: उसमें १६४२ गाथायें होने का उल्लेख किया जाता रहा है। हमने मूल ग्रन्थ को देखा है, उसमें ६७० वीं गाथा के पूर्वार्ध और ६७७ वीं गाथा के मध्य की गाथाएँ अनुपलब्ध हैं, फिर भी उनकी संख्या सम्मिलित कर ली गई है। ग्रन्थ में अनेक गाथाएँ ऐसी भी हैं जिनका अर्धांश या चतुर्थांश अनुपलब्ध है। यदि इन टूटी हुई गाथाओं को पूरा गिन लें तब भी उपर्युक्त ६१ / २ गाथाओं को १६४२ में कम करना पड़ेगा। कथारम्भ के पूर्व विद्यमान प्रारम्भिक १३ गाथाओं में ग्रन्थ का उपोद्घात वर्णित है।१६४१ वी गाथा उपसंहारात्मक है। ये १४ गाथायें संक्षेपकर्ता के द्वारा रची गई हैं। अन्तिम गाथा में लिपिकर्ता का उद्देश्य और नाम वर्णित है। यह यश के द्वारा जोड़ी गई है। शेष सभी गाथाओं के रचयिता पादलिप्ताचार्य हैं। ये गाथायें तरंगवती कथा से ली गई हैं। ____ संक्षेपकर्ता और उपलब्ध प्रति के लिपिकर्ता दोनों पृथक्-पृथक् व्यक्ति प्रतीत होते हैं। संक्षेपकर्ता ( जिनका नाम अज्ञात है ) स्पष्टतया पादलिप्ताचार्य के समसामयिक हैं, क्योंकि उन्होंने संक्षेपण के लिये सूरि ( पादलिप्ताचार्य ) से क्षमा माँगने का उल्लेख किया है - खामेऊणं तयं सूरि। __ उनके कुछ उदात्त एवं निश्चित उद्देश्य थे। वे एक उत्कृष्ट किन्तु दुरूह साहित्यिक कृति की सुरक्षा और सामान्यजन के कल्याण की पवित्र भावना से उत्प्रेरित थे। इसके विपरीत लिपिकर्ता यश ( जस ) का अपना कोई भी उद्देश्य नहीं था। उसने केवल नेमिचन्द्र के प्रयोजनार्थ ग्रन्थ की प्रतिलिपि की थी। तरंगलोला में दो बार ग्रन्थ के प्रयोजन का उल्लेख है। प्रथम बार (प्रारम्भ में ) उसका सम्बन्ध संक्षेपण क्रिया से है और दूसरी बार ( अन्त में लिपि से ), ये प्रयोजन परस्पर भित्र हैं। यदि संक्षेपकर्ता और लिपिकर्ता भिन्न-भिन्न व्यक्ति न होते तो उनके प्रयोजनों में न इतना अन्तर होता और न दो बार उल्लेख करने की आवश्यकता ही पड़ती । इस प्रकार तरंगलोला की प्रारम्भिक गाथाओं के आधार पर अब यह तथ्य नितान्त स्पष्ट है कि सखित्ततरंगवई ( तरंगलोला ) बृहत् तरंगवती का ही सामान्य जनोपयोगी लघु संस्करण है। यह पादलिप्त के द्वारा रची गई उन गाथाओं का समुच्चय है जो कथानक से प्रत्यक्ष सम्बद्ध थीं। अत: नेमिचन्द्र इसके रचयिता कैसे हो सकते हैं ? यश (जस) ने इसकी प्रतिलिपि अवश्य की थी और वही आज उपलब्ध है। * भूतपूर्व शोष अधिकारी पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122