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२७ : श्रमण/अक्टूबसदिसम्बर/१९९५
काव्य की विरहिणी नायिका अपना सन्देश अपने परदेशी पति के पास पहुँचाने के लिए एक पथिक से आग्रह करती है। जैसा पहले कहा गया, पथिक साम्बपुर का निवासी है और वह तपनतीर्थ ( मूलस्थान : मुलतान ) से अपने स्वामी का गोपनीय सन्देश लेकर खम्भात जा रहा है।
पथिक साम्बपुर के प्रशंसापरक वर्णन में अपने उस नगर की वानस्पतिक समृद्धि की ओर संकेत करता है और विरहिणी से गर्व के साथ कहता है कि साम्बपुर में इतने वनस्पति हैं कि सबके नाम जानना कठिन है। संक्षेप में, यही समझो कि इन वनस्पतियों की सघन और निरन्तर छाया में दस योजन तक की दूरी पूरी की जा सकती है।
भारतीय संस्कृति में वृक्षपूजा को अतिशय महत्त्व दिया गया है। इसलिए समस्त प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य, वृक्षों की महिमा से मण्डित है। वृक्षपूजा की महत्ता सार्वभौम स्तर पर स्वीकृत है। यहाँ तक कि विविध प्रदूषणों से पर्यावरण की प्ररक्षा के लिए वनसम्पदाओं या पेड़-पौधों की अस्मिता या अस्तित्व की अनिवार्यता, राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार की गई है। इस सन्दर्भ में कवि अद्दहमाण द्वारा यथारूप चित्रित पर्यावरण के मूल तत्त्वभूत वन और वनस्पतियों का पार्यन्तिक महत्त्व है।
* भूतपूर्व निदेशक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
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