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: श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५
उपयुक्त क्रिया आवश्यक है । गाथा के प्रथम पाद में एक मात्रा की न्यूनता का उल्लेख किया जा चुका है । अत: 'उच्चेजणं' में ही एक मात्रा की वृद्धि के द्वारा खोई हुई क्रिया को ढूँढने का प्रयास करते हैं।
संस्कृत में एक धातु है 'चि'। उसमें प्राकृत का तत्त्वार्थक 'ऊण' प्रत्यय लगने पर चेऊण ( चि + ऊण = चे + ऊण = चेऊण ) रूप बनता है। यदि उक्त धातु में उत् उपसर्ग भी विद्यमान हो तो उच्चेऊण रूप ( उच्चे + ऊण = उच्चेऊण ) निष्पन्न होगा। उत् उपसर्गपूर्वक चिधातु का प्रयोग संग्रह के अर्थ में होता है। उच्चय, समुच्चय, चय आदि शब्द उसी से बनते हैं। 'उच्चेजणं' उसी उच्चेऊण का लिपिच्युत-रूप है । उ का ज हो जाना लिपिकर्ता के प्रमाद से सम्भव भी है। गाथा के उपलब्ध पाठ में उत् उपसर्गपूर्वक चि धातु 'उच्चे' के रूप में अब भी पूर्णत: जीवित है, परन्तु बेचारे ऊण का तो शिर ही कट गया है।
अब उपर्युक्त दोनों गाथाओं को शुद्ध पाठ के साथ यों पढ़िये तो उच्चऊणं गाहाओ पालित्तएण रइयाओ । देसीपयाई मोत्तुं संखित्ततरी कया एसा ।। इराण हियट्ठाए मा होही सव्वहा वि वोच्छेओ । एवं विचिंतिऊणं खाऊणं तयं सूरिं ।।
( यहाँ 'तयं' के स्थान पर 'सयं' अधिक उपयुक्त था.
क्त्वास्यादेर्णस्वोर्वा प्रा०
व्या० सूत्र १/ २७ के अनुसार उच्चेऊण के स्थान पर अनुस्वारान्त उच्चेऊणं हो गया है ) । संस्कृतच्छाया - ततः समुच्चित्य गाथा: पादलिप्तेन रचिता: । देशीपदानि मुक्त्वा संक्षिप्ततरी कृता एषा ।।
इतरेषां हितार्थायाः मा भूत् सर्वथापि व्यवच्छेदः ।
एवं विचिन्त्य क्षामयित्वा तदा सूरिम् ।।
अन्वय
ततः इतरेषां हितार्थायाः (तरंगवत्याः ) सर्वथापि व्यवच्छेदो मा भूत् एवं विचिन्त्य तदा सूरिं क्षामयित्वा पादलिप्तेन रचिताः गाथा: समुच्चित्य, देशीपदानि मुक्त्वा एषा संक्षिप्ततरी कृता ।
अर्थ इस कारण इतरजनों ( साधारणजनों ) का हित (कल्याण) ही जिसका उद्देश्य (प्रयोजन ) है उस ( तरगंवतीकथा ) का सर्वथा व्यवच्छेद (विनाश ) न हो जायेऐसा सोच कर तब सूरि ( पादलिप्त ) से ( स्वयं को ) क्षमा कराकर पादलिप्त के द्वारा रची गई गाथाओं को संगृहीत करके, देशी वाक्यबहुल स्थलों को छोड़ कर यह ( पूर्वाकार की अपेक्षा ) संक्षिप्ततर कर दी गई है।
इस प्रकार उपर्युक्त उद्धरण में संक्षेपण की सम्पूर्ण पृष्ठभूमि ही प्रस्तुत कर दी गई है। इससे सिद्ध होता है कि 'सखित्ततरंगवई' या 'तरंगलोला' में संक्षेपण की पूर्वोल्लिखित द्वितीय पद्धति अपनायी गई है। संक्षेपक ने पादलिप्त के द्वारा रची हुई गाथाओं में ही तरगवती
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