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(५३) ए को रीतें जूदा थक्ष शकेज नही तेपण कदापि देव साहायथी सरशव जूदा थक्ष शके, पण जे मनुष्यावतार गयो ते फरी वीतरागनी श्राज्ञामां वर्ततो एवो मनुष्यनव पामवो पुर्खन ॥ इति तृतीय दृष्टांतः॥
हवे चोथो द्यूतनो दृष्टांत कहे बेः- कोश्क राजानी सना एकशो आठ थांबायें करी समन्वित बे, ते वली एकेके थने एकशो ने श्राप हांसो बे. ते राजा घणो वृक्ष थयो पण मरण पामतो नथी, तेवारें महोटा डोकरायें विचाखु जे हुँ पण वृद्ध थवा आव्यो.तो हवे राजा क्यारें मरशे ने पढ़ी हुं ते राज्य क्यारें जोगवीश ! माटे कोश रीतें राजाने मारी नाखुं तो हूं राजा थालं. ते बुपी वात प्रधाने जाणिने राजाने संजलावी. राजायें विचायुं जे पुत्र पण जीवतो रहे अने हुँ पोते पण जीवतो रहुं ! एवी युक्ति शोधुं. पली बुधिना प्रपंचें करी पुत्रने तेडावीने कडं जे हे वत्स! हुं वृक्ष थयो माटे तुं राज्य ले पण प्रथम श्रापणा घरनी चाल ले, ते कर, के जे थकी तुऊने राज्य स्थिर थाय. कुमर बोल्यो के हे पिताजी ! जे तमें श्रज्ञा श्रापो, ते हुँ