Book Title: Sindur Prakar
Author(s): 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 389
________________ (३७) वार एकादशी, कर नक्षत्र सित पाख ॥ १४ ॥ श्रा नाषा करनारें बीजी टीका उपरथी रचना करेली देखाय जे जे माटें कोइ को स्थलें अर्थमा कचित् फेर दोहामां आवे . अने बेहलां वे काव्यनो अर्थ फेरव्यो बे.. इति सोमप्रजाचार्यविरचित सिंदूरप्रकरः ( सूक्तमुक्तावलि ) ग्रंथ हर्षकीर्ति सूरिकत युक्ति, व्याख्या अन्यपंमितकृत बालावबोध संयुत, बनारसीदासकृतनाषाकाव्यसहितः समाप्तः ॥ समाप्तोयं ग्रंथः॥

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