Book Title: Sindur Prakar
Author(s): 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 388
________________ (३६) पुरितसों मर रे ॥ अरे नर ऐसो होहि, वार वार कहुँ तोहि, नांहि तौ सिघार जैया, निगोद तेरो घर रे ॥ एए॥ ___ कवित्त मात्रात्मक ॥ आलस त्यागु जागु नर चेतन, बल संजारु मति करहुं विलंब ॥ इहां न सुख लवलेश जगतमहिं, निंब विरखमहिं लगै न अंब ॥ तातें तूं अंतर विपद हरु, करु, विलद निज अदकदंब ॥ गहु गुन ज्ञान बैठ चारित रथ, देहि मोख मग सनमुख बिंब ॥ १० ॥ अथ अजोग कवित्त मात्रात्मक ॥ जैन वंस सर हंस सितंबर, मुनिपति अजितदेव अतिवारज ॥ ताके पट्ट वादिमदनंजन, प्रगटे विजयसिंह श्राचारज ॥ ताके पट्ट जए सोमप्रन, तिन्है गिरंथ कियो हितकारज ॥ जाके पढत सुनत अवधारत, हो३ पुरुष जे, पुरुष अनारजे ॥ ११॥ दोहा ॥ नाम सूक्तमुक्तावली, द्वाविंशति अधिकार ॥ सत सिलोक परधान सब, इति गरंथ विस्तार ॥ १२ ॥ कौंरपाल बनारसी, मित्रयुगल इक चित्त ॥ तिन गरंथ नाषा कियो, बहुविधि बंद कवित्त ॥ १३ ॥ सोलहसे क्या नर्वे, रितु ग्रीषम वैसाख ॥ सोम

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