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संघ केदवो बे ? तो के ( यक्तेः के० ) जे संघनी तिनुं ( श्रदादि के० ) तीर्थंकरादि एवी ( पदवी के० ) पदवी जे पदनी प्राप्ति तेज ( मुख्यं के० ) मुख्य एवं ( फलं के० ) फल बे, ते केनी पेठें ? तो के ( कृषेः के० ) क्षेत्रादिना ( सस्यवत् के० ) धान्यनी पेठें अर्थात् जेम कृषि करनार मनुष्यने धान्यप्राप्तिरूप मुख्य फल बे तेम चाहिं श्रीसंघनी क्तिनुं मुख्य फल दादि पदवी ज बे, छाने (चक्रित्वं के० ) चक्रवर्त्ती पणुं तथा (त्रिदशैतादि के ० ) देवेंद्रादि पदपणुं तो ( प्रासंगिकं के०) प्रसंगथीज श्राव्युंएम ( गीयते के० ) कद्देवाय बे. केनी पेठें ? तो के ( तृणवत् के० ) क्षेत्रना घासनी परें. अर्थात् जेम कृषि करनारने विना प्रयासें क्षेत्रथी घासनी प्राप्ति थाय बे, तेम श्रहिं संघन क्तिकारक पुरुषने चक्रवतित्व देवेंद्रत्व पदवी ते विना प्रयासेंज प्राप्त थाय बे. वली ( यन्महिमस्तुतौ के० ) जे संघना प्रजाववर्णनने विषे ( वाचस्पतेः के० ) बृहस्पतिनी ( वाचोऽपि के० ) वाणीयो पण ( शक्तिं के० ) सामर्थ्य जे तेने ( न दधते के० ) धारण करी शकती नथी. वली ए संघ के वो बे ? तो के ( अघहरः के० )
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