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(३४०) विस्तार जेनो एवो तथा (पंचादीरोधशाखः के०) पंचेंजियनो जे रोध तेरूप शाखाउँ जेमां एवो तथा ( स्फुरदलयदलः के०) देदीप्यमान एवं जे अजयदान ते रूप डे पत्र जेमां एवो अथवा (स्फु. टविनयदलः ) एवो पाठ होय तो स्फुट ने विनयरूप पत्र जेमां एवो तथा ( शीलसंपत्प्रवालः के०) ब्रह्मचर्यव्रतरूप प्रवाल एटले नवपल्लव जेमां एवो तथा (श्रमांजःपूरसेकात् के०) श्रझारूप जलनो जे पूर तेनुं जे सिंचq तेथकी ( विपुलकुलबलैश्वर्यसौंदर्यनोगः के०) विस्तीर्ण एवां कुल, बल, ऐश्वर्य, अने सौंदर्य ते रूप ले लोग जेने एवो . अथवा विपुलकुलबलैश्वर्य रूप जे विस्तार तेनो जे जोग जेमां एवो ने तथा ( स्वर्गादिप्राप्तिपुष्पः के० ) स्वर्गादि जे देवलोक, अवेयक, अनुत्तरविमान, तेनी जे प्राप्ति तेज बे पुष्प जेमां एवो जे तपोवृद, ते शिवसुखफलने आपे ॥ ४ ॥ श्रांहिं वसुदेव हरिकेशीवलनी कथानो दृष्टांत ग्रहण करवो. ॥ १ए॥
टीकाः-पुनराह ॥ संतोषति ॥ श्रयं तपएव पादपो वृदः शिवसुखफलदः स्यात् शिवसुखान्येव फलानि ददातीति मोदफलदाता स्यात् । किंनूत