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( ६० ) दूत मोकली कदेवरायुं ने इंद्रदत्तने घणापुत्र माटे तेने तेडवा सारु प्रधान मोकल्यो, तेणे ज राजाने वीनव्यो के स्वामी ! तमारा पुत्रो सहित तमें स्वयंवरने विषे पधारो. राजा पण बावीश पुत्रें परवस्यो थको प्रधान सहित स्वयंवर मंरुपें श्राव्यो.
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हवे जितशत्रुराजायें शुभ मुहूर्ते सर्वनगर शएगा. पोतें नगर बाहिर सर्व परिवार सहित निकल्यो, जंप कराव्यो, तेनी वचमां स्तंन उनो कीधो, उपर सृष्टिसंहारें फरतां या या चक्र मांड्यां, ते उपर पूतली मांगी, उंधामुखने धारण करनारी ते पूतली बे तेथी तेनुं नाम राधा पाडेलं बे. वली देवल तेलथी नरेली एक कडाइ मांगी. तिहां कन्या, पंचवर्णी सुगंध युक्त फूलनी माला लइ यंजनी पासें खावी उजी रही. अने कहे बे के जे पुरुष ए राधावेध साधशे, तेना कंठमां हुं या माला रोपण करीश. एम कही सावधान थइ उनी रही.
अवसरें इंद्रदत्त राजायें पोतानो महोटो श्रीमाल नामें पुत्र बेतेने दूर लइ जइ कयुं के दे पुत्र ! तुं राधावेध साध छाने कन्या सहित ए राज्य