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(१०१) अग्नि पामीयें बैयें. इत्यादि अनेक दृष्टांत श्रापी रा. जाने प्रतिबोध्यो. राजा श्रावक थयो, समक्त्वमूल बार व्रतनो उच्चार कस्यो, यावत् एनी स्त्री सूरिकांतायें निःस्वार्थ जाणी विष दीधुं. राजा अनशन लेश सूरियाजविमानने विषे सूरियाजनामें देव थयो. तिहाथी च्यवी महाविदेहें अवतरी मोक्ष सुख पामशे ॥ इति प्रदेशी राजानो दृष्टांत ॥ १४ ॥
वली पण गुरुसेवार्नु फल कहे . ॥शिखरिणीत्तिम् ॥ पिता माता भ्राता प्रियसहचरी सूनुनिवदः, सुहृत्स्वामीमाद्यत्करिनटरथाश्वः परिकरः॥निमजंतं जंतुं नरककुहरे रदितुमलम्, गुरोर्धर्माऽधर्मप्रकटनपरात्कोऽपि न परः॥१५॥
अर्थः-(नरककुहरे के०) नरकविवरनी मध्ये (निमतं के०) डूबता एटले पडता एवा (जंतुं के०) जीवने (गुरोः के ) गुरुथकी ( परः के०) बीजो (कोपि के० ) को पण (रक्षितुं के०) रक्षण करवाने ( न के० ) नहि (अलं के० ) समर्थ होय. केम के ? ( पिता के पिता तेपण तेनुं रक्षण कर