Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

Previous | Next

Page 9
________________ ग्रन्थकर्ता का परिचय। १- श्री जिनचन्द्राचार्य। ग्रन्थ “सिद्धान्तसार'' के मूलक" जिनचन्द्र नाम के आचार्य हैं जैसा कि उक्त ग्रन्थ की ७८ वी गाथा से और उस की टीका से भी मालूम होता है। इस नाम के कई आचार्य और भट्टारक हो गये हैं। परन्तु ग्रन्थ में प्रशस्ति आदि का अभाव होने के कारण निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि इसके कर्ता कौन हैं और इसकी रचना किस समय में हुई है। आश्चर्य नहीं जो इसके कर्ता भास्करनन्दि के गुरू वे जिनचन्द्र हों जिनका कि उल्लेख श्रवण बेल्गुल के ५५ वें शिलालेख में किया गया है। मद्रास की ओरियण्टल लायब्रेरी में तत्वार्थ की सुखबोधिका टीका (नं. ५१६५) की एक प्रति है, उसकी प्रशस्ति में लिखा है: तस्यासीत्सुविशुद्धदृष्टिविभवः सिद्धान्तपारंगतः शिष्यः श्री जिनचन्द्र नामकलितश्चरित्रचूड़ामणि। शिष्यो भास्कर नन्दि नाम विबुधस्तस्याभवत् तेनाकारि सुखदिबोधविषया तत्वार्थवृत्तिः स्फुटम्।। अथ श्रीमूलसंघेऽस्मिन्नन्दिसंघेऽनघेऽजनि। बलात्कारगणस्तत्र गच्छः सारस्वतस्त्वभूत्॥ ११॥ तत्राजनि प्रभाचन्द्रः सूरिचन्द्राजितांगजः। इससे मालूम होता है कि यह टीका भास्करनन्दि की बनाई हुई है और उनके गुरू जिनचन्द्र सिद्धान्तशास्त्रों के पारंगत थे। ___जिनचन्द्र नाम के एक और आचार्य हो गये हैं जो धर्म संग्रह श्रावकाचार के कर्ता पं. मेधावी के गुरू थे और शुभचन्द्राचार्य के शिष्य थे। ये शुभचन्द्राचार्य पद्यमनन्दि आचार्य के पट्टधर थे और पाण्डवपुराण आदि ग्रन्थों के कर्ता शुभचन्द्र से पहले हो गये हैं। पं. मेधावी ने त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति ग्रन्थ की दान प्रशस्ति में * उनका परिचय इस प्रकार दिया है:-- दर्शनज्ञानचारित्रतपोवीर्यसमन्वितः।। १२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86