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(३०) केवलदुगमणपज्जवहीणा णव होति वेउव्ये।। ३४।।
दश केवलद्विकं वर्जयित्वा योगचतुष्के द्वादश औदारिके।
केवलद्विकमनःपर्ययहीना नव भवन्ति वैक्रियिके। दस केवलयुग वज्जिय जोगचउक्के-- इति, असत्यमनोयोगोभयमनोयोगासत्यवचन योगोभयवचनयोगा इति योगचतुष्के केवलद्विकवर्जिताः केवलज्ञानकेवलदर्शनद्वयरहिता अन्ये दशोपयोगाः सन्ति। दुदसय ओराले-- इति,
औदारिककाययोगे द्वादशोपयोगा विद्यन्ते। केवलदुगमणपज्जवहीणा णव होंति वेउव्वे- इति, वैक्रियिककाययोगे केवलज्ञान केवलदर्शनद्वयमनः पर्ययज्ञानहीना अन्ये नव उपयोगा भवन्ति॥३४॥
गाथार्थ ३४- (जोग चउक्के) चार योगों में अर्थात् असत्य मनोयोग, असत्य वचन योग, उभय मनोयोग और उभय वचनयोग में (केवलदुग वज्जिय) केवल ज्ञान एवं केवल दर्शन इन दो उपयोगों को छोड़कर (दस) दस उपयोग होते हैं। (वेउव्वे) वैक्रियक काय योग में (केवल दुगमणपज्जवहीना) केवल ज्ञान, केवल दर्शन और मनःपर्यय ज्ञानोपयोग को छोड़कर (नव) नौ उपयोग (होंति) होते है।
चक्खु विभंगूणा सगमिस्से आहारजुम्मए पढमं । दंसणतियणाणतियं कम्मे ओरालमिस्से य।। ३५॥
चक्षुर्विभंगोनाः सप्त मिश्रे आहारकयुग्मे प्रथमं।
दर्शनत्रिकाज्ञानत्रिकं कार्मणे औदारिकमिश्रे च।। चक्खुविभंगूणा सग मिस्से- इति, वैक्रियिकमिश्रकाययोगे चक्षुर्दर्शनविभंगज्ञानोनाः सप्त भवन्ति। के ते? कुमतिकुश्रुतसुमतिश्रुतावधिज्ञानानि पंच अचक्षुर्दर्शनावधिदर्शनद्वयमिति सप्तोपयोगाः स्युः। आहारजुम्मए पढमं दसणतिय णाणतियं- आहारकयुग्मे च, पढमं णाणतियं प्रथमं ज्ञानत्रिकं प्रथमं दर्शनत्रिकं भवति। कोऽर्थः? मतिश्रुतावधि-ज्ञानोपयोगास्त्रयः, चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनोपयोगास्त्रयः, एवं षडुपयोगा आहारकयुग्मे भवन्तीति स्पष्टार्थः। कम्मे ओरालमिस्से य- इति, पदस्य व्याख्यानं उत्तरगाथायां ज्ञेयं ।। ३५।।
अन्वयार्थ ३५-- (मिस्से) वैक्रियकमिश्र काययोग में केवलज्ञानोपयोग, केवल दर्शनोपयोग, मनःपर्ययज्ञानोपयोग और (चक्खुविभंगूणा) चक्षुदर्शन तथा विभंगा वधि ज्ञानोपयोग को छोड़कर (सग) सात उपयोग(आहार जुम्मए) आहारक काययोग और आहारक मिश्र काय योग में (दंसणतिय णाण जुम्मए) तीन दर्शनोपयोग और
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