Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 53
________________ (३८) औदारिककाययोग वैक्रियककाययोगाहारक काययोगाहारकमिश्रकाययोगाश्चत्वारः, एवं द्वादशयोगाः पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तकाले संभवन्तीत्यर्थः । इत्येकस्मिन् जीवसमासे द्वादशयोगा निरूपिताः । तब्भवगईसु एदे इति तेषामेकेन्द्रियसूक्ष्मापर्याप्तादीनां जीवानां भवप्राप्तेषु, ऐदे- इति एते एको द्वौ द्वादश योगा भवन्ति । भवंतरगईसु कम्मइओ - कार्मणको योगः स भवान्तरगतिषु प्रकृताद्भवादन्यो भवो भवान्तरं तत्र गतयो गमनानि भवान्तरगतिषु भवान्तरगमनेषु कार्मणकाययोगो भवतीत्यर्थः । सत्तसु पुण्णेसु हवे ओरालिय-- सप्तसु जीवसमासेषु पर्याप्तेषु औदारिककाययोगो भवति । मिस्सयं अपुण्णेसु इति, अपर्याप्तेषु सप्तसु एकेन्द्रियसूक्ष्मबादरद्वित्रिचतुः पंचेद्रियसंज्ञ्यसंज्ञिजीवेषु अपर्याप्तकालेषु सप्तथानेषु, मिस्सयं औदारिकमिश्रकायो भवेत् । इगि इगि जोग-- इति, द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियासंज्ञिपर्याप्तेषु चतुःस्थानेषु एकैकस्य योगस्य पुनरप्यन्यस्यैकस्य योगस्य संयोग क्रियते एवं द्वयं स्यात् । कोऽर्थ ? द्वीन्द्रियादिपर्याप्तेषु चतुःस्थानेषु औदारिककाययोगानुभयवचनयोगौ द्वौ भवत इत्यर्थः । विहीणा - पंचेन्द्रियपर्याप्तेषु द्वादशयोगा भवन्तीति कथितं तत्कथं योगास्तु पंचदश वर्तन्ते ? ते योगाः, विहीणा - द्वाभ्यामौदारिकमिश्रकायवैक्रियिकमिश्रकायाभ्यां हीनाः क्रियन्ते । भवांतरगईसु कम्मइओ इति वचनात् कार्मणकायेन विना अन्ये द्वादशयोगाः पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तकेषु भवन्तीत्यर्थः ।। ४३ ।। ४४॥ अन्वयार्थ ४३.४४ ( तब्भवगईसु एदे ) उस भव अर्थात् वर्तमान भव को प्राप्त होने पर (जीव समासेसु) जीवसमासों में (ते) वे योग (या) जानना चाहिये । (णवसु) नव (चउक्के) चार (इक्के) और एक जीव समास स्थान में यथा क्रम से (इगि) एक (दो) दो (बारसया) बारह (जोगा ) योग (हवंति) होते हैं । तथा (भंवतरगईसु) एक भव से दूसरे भव में जाने पर अर्थात् विग्रह गति में (कम्मइओ) कार्मण काय योग होता है। ( सत्तसु पुण्णेसु) सात पर्याप्त जीव समासों में (ओरालिय) औदारिक काय योग ( अपुण्णेसु) अपर्याप्त जीव समासों मे (मिस्सयं ) औदारिक मिश्र काय योग (हवे ) होता है । ( इगिइगि जोंग ) द्वीन्द्रिय आदि जीवों के एक- एक और संज्ञी पंचेन्द्रिय (जीवसमासेसु) जीव समासों में (विहीणा) दो योग कम (या) जानना चाहिये । भावार्थ- वर्तमान भव को प्राप्त एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त में एक औदारिक मिश्र काय योग होता है एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त में एक औदारिक काय योग है। एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त में औदारिक मिश्रकाय योग, एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त में औदारिक काय योग, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, असंज्ञी, अपर्याप्त पंचेन्द्रिय संज्ञि अपर्याप्त जीवों के एक औदारिक मिश्र काय योग होता है। इस प्रकार 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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