Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 80
________________ मिस्सोरालिविउब्वियमिस्सूण तिदालया मिस्से।। ७३।।। प्रथमगुणे पंचपंचाशत् द्वितीये पंचाशत् च कार्मणानोनाः। मिश्रौदारिकवैक्रियिकमिश्रोनाः त्रिचत्वारिंशन्मिश्रे।। पढमगुणे- प्रथममिथ्यात्वगुणस्थाने आहारकतन्मिश्रद्वयवा अन्ये पणवण्णं - पंचपंचाशत्प्रत्यया भवन्ति। विदिए पण्णं च- पुनः सासादनगुणस्थाने मिथ्यात्वपंचकाहारद्वयरहिता अन्ये पंचाशत्प्रत्यया भवन्ति। कम्मणेत्यादि, मिस्सेतृतीयमिश्रगुणस्थाने ये सासादने कथिताः पंचाशत्प्रत्ययाः। ते कथंभूताः ? कर्मणेत्यादि, कार्मणकार्ययोगानन्तानुबन्धि क्रोधमानमायालोभचतुष्कोना औदारिकमिश्रकायोनो वैक्रियिकमिश्रकायोन एतैः सप्तभि_ना अन्ये, तिदाला- त्रिचत्वारिंशत्प्रत्यया भवन्ति ।।७३॥ ____ अन्वयार्थ- (पढमगुणे) प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में (पणवण्णं) ५५ पचपन आस्रव के कारण होते हैं। (विदिए पण्णं च) सासादन गुणस्थान में पचास (मिस्से) मिश्र गुणस्थान में (कम्मणअणूणा) कार्मण काययोग, अनन्तानुबन्धी चतुष्क को छोड़कर (मिस्सोरालिविउव्वियमिस्सूण) और औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग इन से रहित (तिदालया) तेतालीस आस्रव होते हैं। भावार्थ- प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में आहारक काययोग और आहारक मिश्रकाययोग इन दोनों को छोड़कर ५५ बंध के कारण होते हैं। पुनः सासादन गुणस्थान में मिथ्यात्व पाँच और आहारकद्विक को छोड़कर ५० आस्रव होते हैं और मिश्रगुणस्थान में कार्मण काययोग, अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया लोभ औदारिकमिश्रकाययोग और वैक्रियिकमिश्रकाययोग इन सातों से रहित तेतालीस आस्रव होते हैं। हुंति छयालीसं खलु अयदे कम्मइयमिस्सदुगजुत्ता। विदियकसायतसाजमदुमिस्सवेउब्बियकम्मूणा।। ७४।। भवन्ति षट्चत्वारिंशत् खलुअयते कार्मणमिद्विकयुक्ताः।। द्वितीयकषायत्रसायमद्विमिश्रवै क्रि यिक कार्मणो नाः ।। सगतीसं देसे? खलु-निश्चितं, अयदे- चतुर्थेऽविरतगुणस्थाने मिश्रगुणस्थानोक्तास्त्रिचत्वारिंशत्प्रत्ययाः, कम्मइयमिस्सदुगजुत्ता-- इति, कार्मणौदारिकमिश्रवैक्रियिकमिश्रत्रययुक्ताः सन्तः, छयालीसं षट्चत्वारिंशत्प्रत्यया भवन्ति। सगतीसं देसे इति, उत्तरगाथायां सम्बन्धः। देसे - इति, पंचमे देशविरतगुणस्थाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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