Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 79
________________ भवन्तीत्याशंकायामाह- उवरिमदुगं उपरिमद्वयं कषाययोगयुग्मं। कथंभूतं? अविरतियुक्तं एवं त्रयः प्रत्यया भवन्ति, कोडर्थः ? अविरतिदेशविरतिगुणस्थानयोद्वयोरविरतिकषाययोगानां त्रयाणां प्रत्ययानां बन्धो भवतीत्यर्थः। दोण्णि तदो पंचसुइति, ततो देशविरतिगुणस्थानात्, पंचसु- इति, पंचगुणस्थानेषु प्रमत्ताप्रमत्तापूर्वकरणानिवृत्तिकरणसूक्ष्मसाम्परायाभिधानेषु दोण्णि- द्वौ प्रत्ययौ ज्ञातव्यौ, को भावः ? प्रमत्तादिपंचसु गुणस्थानेषु कषाययोगयोर्द्वयोर्बन्धः इति भावः। ततः, तिसु- इति, त्रिषु गुणस्थानेषु योगप्रत्यस्यैकस्य बन्ध इत्यर्थः। इदि- इति अमुना प्रकारेण, अट्ठण्हं कम्माणं - ज्ञानावरणादीनामष्टानां कर्मणां, सामण्णपच्चयासामान्येन मिथ्यात्वादिप्रत्यया बन्धकारणानि भवन्ति।।७१-७२।। अन्वयार्थ- (मिच्छे चउपच्चइओ बंधो) मिथ्यात्व गुणस्थान में बंध के चार प्रत्यय होते हैं। (सासणदुग) सासादन सम्यग्दृष्टि और मिश्रगुणस्थान में (तिपच्चइओ) तीन प्रत्यय बंध के होते हैं। (अविरइदेसगुणे) चतुर्थ अविरत सम्यग्दृष्टि और पंचम देशविरत गुणस्थान में (उवरिमदुगं) ऊपर के दो, कषाय और योग(च) तथा (ते विरइजुआ) अविरतियुक्त तीन बंध के प्रत्यय होते हैं। (दोण्णि तदो पंचसु) देशविरत गुणस्थान से आगे सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान तक (दोण्णि) दो प्रत्यय (तिसु) आगे के तीन गुण स्थानों में (इक्को) एक (जोगपच्चई) योग प्रत्यय (इदि) इस प्रकार (अट्टह) आठ (कम्माणं) कर्मों के (साम्मणपच्चा) सामान्य प्रत्यय बंध के कारण होते हैं। भावार्थ- मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग ये चार बंध के प्रत्यय होते हैं। द्वितीय सासादनगुणस्थान और तृतीय मिश्रगुणस्थान में अविरति, कषाय और योग इस प्रकार तीन बंध के प्रत्यय होते हैं। चतुर्थ अविरत सम्यग्दृष्टि और देश विरत गुणस्थान में अविरति, कषाय और योग ये तीन बंध के कारण होते हैं। पंचम गुणस्थान से आगे के प्रमत्त संयत, अप्रमत्त संयत, अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण, और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानों में दो प्रत्यय अर्थात् कषाय और योग बंध के कारण होते हैं। आगे के तीन गुणस्थानों में अर्थात् उपशांत कषाय, क्षीण कषाय और सयोगी केवली के एक योग ही बंध का कारण है। इस प्रकार ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों के सामान्य से बंध के कारण होते हैं। पूर्वं सामान्येन प्रत्ययबन्धः कथितः, अधुना विशेषेण प्रत्ययबन्धाः कथ्यन्ते; पूर्व में सामान्य रूप से बंध कारण कहे अब विशेष रूप से (आस्रव) बंध के कारण कहते हैं : पढमगुणे पणवण्णं विदिए पण्णं च कम्मणअणूणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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