Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 77
________________ (६२) आस्रव (भासिया) कहे गये हैं । ( सत्तसु) सात (पुण्णेसु) पर्याप्त (जीव समासेषु) जीव समासों में (ओरालिय) औदारिक काय योग ( अपुण्णेसु) सात अपर्याप्त जीव समासों में (मिस्सi) मिश्र काय योग होता है । ( इगिइगि जोग - विहीणा ) सात पर्याप्त और सात अपर्याप्त जीवसमासों में वे आस्रव एक-एक योग से रहित (या) जानना चाहिए। भावार्थ- दोनों गाथाओं का परस्पर में सम्बन्ध है एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव समासों के क्रमशः अडतीस, चालीस, इकतालीस, बयालीस, आस्रव होते हैं तथा पंचेन्द्रिय संज्ञी जीवों के सभी तथा असंज्ञी जीवों के पैंतालीस आस्रव होते हैं। इसका खुलासा इस प्रकार है - एकेन्द्रिय जीवों के पांच मिथ्यात्व स्त्रीवेद और पुरूष वेद को छोड़कर शेष २३ कषाय तीन योग (औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग) छह काय और एक स्पर्शन इन्द्रिय संबंधी ये सात प्रकार की अविरति इस प्रकार ३८ आस्रव होते हैं, द्वीन्द्रिय जीवों के उक्त अडतीस आस्रव तथा अनुभय वचनयोग रसना इन्द्रिय इस प्रकार चालीस आस्रव होते हैं त्रीन्द्रिय जीवों के उक्त चालीस तथा घ्राण इन्द्रिय सहित इकतालीस आस्रव होते हैं, चतुरिन्द्रय जीवों के उक्त इक्तालीस तथा चक्षु इन्द्रिय सहित बयालीस आस्रव होते हैं असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के उक्त बयालीस तथा श्रोत्र इन्द्रिय स्त्री वेद, पुरूष वेद सहित पैंतालीस आस्रव होते हैं, पंचेन्द्रिय संज्ञी जीवों के सभी आस्रव होते हैं । सात पर्याप्त सात अपर्याप्त जीव समासों एक-एक योग से रहित प्रत्यय होते है अर्थात् सात पर्याप्तकों में जब औदारिक काययोग होता है तब औदारिक मिश्र काययोग नही होता है और जब सात अपर्याप्तकों में औदारिक मिश्रकाययोग होता है तब औदारिक काययोग नहीं होता है चौदह जीव समासों में यथासंभव होने वाले आस्रव इस प्रकार से हैं – एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व ५, षट्काय जीव अविरति और स्पर्शेन्द्रियजन्य एक अविरति इस प्रकार कुल अविरति सात, स्त्रीवेद और पुंवेद को छोडकर २३ कषाय, औदारिक मिश्रकाययोग और कार्मण काययोग दोनों योग - इस प्रकार सब ३७ प्रत्यय होते हैं । एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्तकों में मिथ्यात्व ५, अविरति ७, कषाय २३, औदारिक काययोग इस प्रकार ३६ प्रत्यय होते हैं । एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्तकों में मि. ५, अवि ७, कषा. २३ औदारिक मिश्र और कार्मण काययोग ये दो, इस प्रकार ३७ प्रत्यय होते हैं। एकेन्द्रिय बादर पर्याप्तकों में पूर्वोक्त एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्तकों के समान ३६ आस्रव जानना चाहिए । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकों में सामान्य से कहे गये द्वीन्द्रिय जीवों के आस्रवों में से औदारिक काययोग और अनुभय वचन योग से रहित ३८ आस्रव जानना चाहिए । द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवसमास में मि. ५, अविरति ८, कषाय २३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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