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वैक्रियिकमिश्र काययोग, कार्मणकाययोग, चार मनोयोग और चार वचन योग इस प्रकार ये तेरह योग। उपशम सम्यक्त्व में छियालीस आश्रव होते हैं वे इस प्रकार से हैं - १२ अविरति, अनन्तानुबंधी चतुष्क को छोडकर शेष २१ कषाय आहारककाययोग और आहारक मिश्रकाययोग को छोडकर शेष १३ योग।
आहारयजुवजुत्ता खाइयदुगे य ए वि अडदाला। मिस्से तेदाला ते तिमिस्साहारयदुगूणा॥ ६५।।
आहारकयुगयुक्ताः क्षायिकद्विके च तेऽपि अष्टचत्वारिंशत्।
मिश्रे त्रिचत्वारिंशत् ते त्रिमिश्राहारकद्विकोनाः॥ खाइयदुगे य- च पुनः क्षायिकयुग्मे क्षायिकवेदकसम्यक्त्वे च आहार यजुवजुत्ता- आहारकद्वयसहिताः, ए वि- इति, तेऽपि उपशमसम्यक्त्वोक्ताः षट्चत्वारिंशत्, अडदाला- अष्टचत्वारिंशत् भवन्ति। ते के ? अविरतयः १२ कषायाः २१ योगाः १५ एवं ४८ । मिस्से- मिश्रसम्यक्त्वे तेदाला-त्रिचत्वारिंशत्प्रत्यया भवन्ति। ते--पूर्वोक्ताः क्षायिकवेदकोक्ता अष्टचत्वारिंशद्वर्तन्ते तेभ्यः पंच निष्काश्यते। ते के ? तिमिस्साहारयदुगुणा त्रिमिश्रा औदारिकमिश्रवैक्रियिकमिश्रकार्मणका-हारकाहारकमिश्रमेवं पंचहीनास्त्रिचत्वारिंशत्। के ते इति चेदुच्यते- अविरतयः १२ कषायाः २१ अष्टौ मनोवचनयोगा औदारिकवैक्रियिककाययोगौ द्वौ एवं ४३ मिश्रसम्यक्त्वे भवन्तीत्यर्थः।। ६५॥
अन्वयार्थ- (खाइयदुगे) क्षायिक और वेदक सम्यक्त्व में उपशम सम्यक्त्व के छियालीस आस्रव और (आहारयजुवजुत्ता) आहारक द्विक सहित (अडदाला) अडतालीस आस्रव होते हैं। (मिस्से) मिश्र सम्यक्त्व में क्षायिक और वेदक सम्यक्त्व के अडतालीस आस्रव में से (तिमिस्सा हारयदुगूणा) तीन मिश्र और आहारक द्विक से रहित (तेदाला) तेतालीस आस्रव होते हैं।
भावार्थ- क्षायिक और वेदक सम्यक्त्व में पाँच मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी क्रोध आदि चार कषाय से रहित अडतालीस आस्रव होते हैं अर्थात् अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलन कोध, मान, माया, और लोभ ये बारह कषाय नौ नोकषाय, पन्द्रह योग और बारह अविरति इस प्रकार क्षायिक और वेदक सम्यकत्व में अडतालीस आस्रव होते हैं। मिश्र सम्यकत्व में पांच मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी क्रोध आदि चार, औदारिक मिश्र काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग,कार्मण काय योग, आहारक काययोग और आहारक मिश्र काययोग इनसे रहित तेतालीस आस्रव होते हैं अर्थात् अप्रत्याख्यान आदि बारह कषाय नौ नो कषाय चार मनोयोग चार वचन योग
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