Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ अविरति, २५ कषायें, ५ मिथ्यात्व और १५ योग। अभव्य जीवों के आहारक द्विक बिना पचपन आस्रव होते हैं वे इस प्रकार हैं- १२ अविरति, २५ कषायें, ५ मिथ्यात्व, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग, चार मनोयोग और चार वचनयोग तेरह योग। उपशम सम्यक्त्व में छियालीस आस्रव होते हैं वे इस प्रकार से हैं- १२ अविरति, अनन्तानुबन्धी चतुष्क को छोड़कर शेष २१ कषाय, आहारक काययोग और आहारक मिश्रकाययोग को छोड़कर शेष तेरह योग। तेजादितिए भब्वे सब्वे णाहारजुम्मयाऽभवे । पणवण्णं ते मिच्छाअणूण छादाल उवसमए॥ ६४॥ तेजआदित्रिके भव्ये सर्वे अनाहारकयुग्मका अभव्ये। पंचपंचाशत् ते मिथ्यात्वानोनाः षट्चत्वारिंशत् उपशमे।। तेजादितिए- पीतपद्मशुक्ललेश्यात्रिके तथा भव्यजीवे, सव्वे- सर्वे सप्तपंचाशत्प्रत्यया नानाजीवापेक्षया भवन्ति। णाहारजुम्मयाऽभव्वे पणवण्णं - अभव्यजीवे आहारकतन्मिश्रवा अन्ये पंचपंचाशदास्त्रवाः स्युः। इति लेश्याभव्यमार्गणयोः प्रत्ययाः तेमिच्छाउ/णूणछादाल उवसमए-उपशमकसमयक्त्वे तेइति, अभव्योक्ताः पंचपंचाशत्प्रत्यया मिथ्यात्वपंचकानन्तानुबन्धिचतुष्कोना अपरे षट्चत्वारिंशत्प्रत्यया भवन्ति। ते के चेदुच्यते- अविरतयः १२ कषायाः २१ आहारकद्वयं विना योगाः १३ एवं षट्चत्वारिंशत्।। ६४॥ अन्वयार्थ- (तेजादितिए) पीत, पद्म शुक्ल इन तीन लेश्याओं में (भव्वे) और भव्य जीवों के (सव्वे) सभी अर्थात् सत्तावन आस्रव होते हैं। (अभव्वे) अभव्य जीवों के (णाहारजुम्मया) आहारक द्विक बिना (पणवण्णं) पचपन आस्रव होते हैं : सम्यकत्व मार्गणा की विवक्षा में (उवसमए) उपशम सम्यक्त्व में आहारकद्विक (मिच्छाअणूण) पाँचों मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी चतुष्क से रहित (छादाल) छियालीस आस्रव होते हैं। भावार्थ- पीत, पद्म, शुक्ल इन तीन लेश्याओं में और भव्य जीवों के नाना जीवों की अपेक्षा सभी अर्थात् सत्तावन आश्रव होते है वे इस प्रकार से हैं १२ अविरति, २५ कषायें, ५ मिथ्यात्व और १५ योग। अभव्य जीवों के आहारक द्विक बिना पचपन आश्रव होते हैं वे इस प्रकार है . १२ अविरति, २५ कषायें, ५ मिथ्यात्व, औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र काययोग,वैक्रियिककाययोग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86