Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 63
________________ (४८) तीन योग, पुरुष वेद को छोड़कर २३ कषाय, पांच मिथ्यात्व, षट्काय संबंधी छह अविरति और एक स्पर्शन इन्द्रिय सम्बन्धी अविरति इस प्रकार अडतीस आस्रव होते हैं। आहारदुगं हित्ता अण्णसु जोएसु णिय णियं धित्ता। जोगं ते तेदाला णायव्वा अण्णजोगूणा।। ५४।। आहारकद्विकं हृत्वा अन्येषु योगेषु निजं निजं धृत्वा। योगं ते त्रिचत्वारिंशत् ज्ञातव्या अन्ययोगोनाः।। __ आहारदुगं हित्ता- आहारद्विकं हृत्वा वर्जयित्वा। अण्णसु जोएसु णिय णियं धिता जोगं- अन्येषु त्रयोदशयोगेषु मध्ये निजं निजं स्वकीयं स्वकीयं योगं धृत्वा पुनः, अण्णजोगूणा- अन्यैर्वादशभिर्योगैरूनास्ते, तेदाला णायव्वा- इति, ते प्रत्ययाः स्वकीयस्वकीययोगयुक्ताः त्रिचत्वारिंशदास्त्रवा ज्ञातव्याः। अथ स्पष्टतयोच्यतेसत्यमनोयोगे मिथ्यात्वपंच (कं) अविरतयो द्वादश कषायाः पंचविंशतिः स्वकीयमनोयोगश्चैक एवं त्रिचत्वारिंशत् आस्रवा भवन्ति। एवं असत्यमनोयोगे ४३, उभयमनोयोगे ४३, अनुभयमनोयोगे ४३, सत्यवचनयोगे ४३, असत्यवचनयोगे ४३, उभयवचनयोगे ४३, अनुभयवचनयोगे ४३, औदारिककाययोगे ४३, तन्मिश्रे ४३, वैक्रियिककाययोगे ४३, तन्मिश्रकाययोगे ४३, कार्मणकाययोगे ४३, ।। ५४।। अन्वयार्थ ५४- (आहारदुगं हित्ता) आहारक द्विक को छोड़कर (अण्णसुजोएसु) अन्य तेरह योगों में (णिय णियं) अपने अपने योग (धित्ता) सहित (अण्ण जोगूणा) अन्य योगों से रहित (ते जोगं) उन सभी योगों में (तेदाला) तेतालीस आस्रव (णायव्वा) जानना चाहिए। भावार्थ- आहारक काय योग एवं आहारक मिश्र काययोग को छोड़कर शेष योगों में अपने-अपने योगों सहित और अन्य योगों रहित तेतालीस आस्रव जानना चाहिए जैसे सत्य मनोयोग में मिथ्यात्व पांच, बारह अविरति, पच्चीस कषाय तथा सत्यमनोयोग इस प्रकार तेतालीस आश्रव होते हैं। इसी प्रकार अन्य योगों में भी आस्रव लगा लेना चाहिए। संजालासंढित्थी हवंति तह णोकसायणियजोया। बारस आहारजुगे आहारयउहयपरिहीणा॥ ५५॥ संज्वलना अषण्ढस्त्रियो भवन्ति तथा नोकषायनिजयोगाः। द्वादश आहारकयुगे आहारकोभयपरिहीनाः।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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