Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 67
________________ (५२) इनसे रहित अड़तालीस आस्रव होते हैं वे इस प्रकार हैं- षटकाय, पांच इन्द्रिय और एक मन संबंधी ये बारह प्रकार की अविरति व अनन्तानुबंधी चतुष्क को छोड़कर शेष २१ प्रकार की कषाय और १५ योग। मनःपर्यय ज्ञान में पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा ये सात नो कषाय, संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कषाय, चार मनोयोग, चार वचनयोग तथा एक औदारिक काययोग ये बीस आस्रव होते हैं। केवलज्ञान में सत्यमनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्यवचनयोग, अनुभयवचन योग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग और कार्मण काययोग इस प्रकार ये सात आस्रव होते हैं। वेउबिदुगूरालियमिस्सयकम्मूण एयदसजोया। संजालणोकसाया चउवीसा पढमजमजुम्मे॥ ५॥ वैगूर्विकद्विकौदारिकमिश्रकार्मणोना एकादशयोगाः। संज्वलननोकषायाः चतुर्विंशतिः प्रथमयमयुग्मे।। पढमजमजुम्मे - प्रथमयमयुग्मे सामायिकसंयमे छेदोपस्थानासंयमे च, चउवीसा- चतुर्विंशतिप्रत्यया भवन्ति। के ते? वेउव्वि- वैक्रियिकतन्मिश्रद्वयौदारिकमिश्रकार्मणकैश्च चतुर्भि_ना अन्ये, एयदसजोया अष्थै मनोवचनयोगा औदारिककाययोगाहारकाहारकमिश्रकाययोगाश्चेति त्रयः समुदिता एकादशयोगाः। संजालसंज्वलनक्रोधमानमायालोभाश्चत्वारः। णोकसाया- हास्यादिनवनोकषाया एवं चतुर्विंशतिः।। ५६॥ ___ अन्वयार्थ ५६- (पढमजमजुम्मे) प्रथम संयम युगल में अर्थात् सामायिक, छोदोपस्थापना संयम में (वेउव्विदुग) वैक्रियिक द्विक (उरालियमिस्सय) औदारिक मिश्र काययोग (कम्मूण) और कार्मणकाययोग इन योगों से रहित अन्य (एयदसजोया) ग्यारह योग और (संजाणणोकसाया) चार संज्जवलन, नौ नोकषाय ये (चउवीसा) चौबीस आस्रव होते हैं। परिहारे आहारयदुगरहिया ते हवंति वावीसं। संजलणलोहमादिमणवजोगा दसय हुँति सुहुमे य।। ६०॥ परिहारे आहारकद्विकरहितास्ते भवन्ति द्वाविंशतिः। ___ संज्वलनलोभ आदिमनवयोगा दश भवन्ति सूक्ष्मे च॥ परिहारेत्यादि। परिहारविशुद्धिसंयमे, आहारयदुगरहिया- आहारकाहारकमिश्रद्वयरहितास्ते पूर्वोक्ताः सामायिकच्छेदोपस्थापनयोः कथिता द्वाविंशतिः प्रत्यया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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