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(३५) उपयोग होते हैं (सुक्काए) शुक्ल लेश्या में (भव्वे वि य) और भव्य जीवों के भी (दुदस) बारह उपयोग होते हैं।
भावार्थ- कृष्ण, नील और कापोत लेश्या में मनःपर्यय ज्ञानोपयोग, केवलज्ञानोपयोग और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर नौ उपयोग होते हैं पीत और पद्म लेश्या में केवलज्ञानोपयोग तथा केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर शेष बचे हुए दस उपयोग होते हैं शुक्ल लेश्या में बारह उपयोग होते हैं। भव्य मार्गणा में भव्य जीवों के बारह उपयोग होते हैं।
पंच असुहे अभब्वे खाइयतिदए य णव सग छेय। मिस्सा मिस्से सासण मिच्छे छप्पंच पणयं च।। ४१।। ___पंच अशुभा अभव्ये क्षायिकत्रिके च नव सप्त षडेव।
मिश्रा मिश्रे सासने मिथ्यात्वं षट् पंच पंचकं च।। पंचेत्यादि। अभव्यजीवे कुमतिकुश्रुतविभंगज्ञानं चक्षुरक्षुर्दर्शनोपयोगाः पंच अशुभा भवन्ति । इति भव्यमार्गणा। खाइयतिदए णव सग छेय-- क्षायिकत्रिके नव सप्त षडेव। अत्र यथासंख्यालंकारः। क्षायिकसम्यक्त्वे कुज्ञानत्रयवर्जा अन्ये नवोपयोगा भवन्ति। वेदकसम्यक्त्वे कुज्ञानत्रयकेवलज्ञानदर्शनद्वयरहिता अपरे सप्तोपयोगाः सन्ति। उपशमसम्यक्त्वे सुमत्यादित्रयचक्षुरादित्रय एवं षडुपयोगाः स्युः। मिस्सा मिस्से मिश्रे सम्यक्त्वे मिश्राः षट् भवन्ति। ते के ? मतिश्रुतावधिज्ञानोपयोगास्त्रयो मिश्ररूपाः। मिश्रा इति कोऽर्थः? किंचित्किंचित्कुज्ञानं किंचित्किंचित्सुज्ञानं चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनोपयोगास्त्रय एवं षडुपयोगाः। सासण- इति, सासादनसम्यक्त्वे कुज्ञानत्रयं चक्षुरचक्षुर्दर्शनद्वयं एवं पंचोपयोगाः स्युः। मिच्छे-- मिथ्यात्वसम्यक्त्वे सासादनोक्तानामुपयोगानां पंचकं भवति। इस सम्यक्त्वमार्गणा।। ४१॥
गाथार्थ ४१- (अभव्वे) अभव्य जीवों के (असुहे)अशुभ (पंच) पांच उपयोग होते है (खाइयतिदए) क्षायिक तीन अर्थात क्षायिक वेदक एवं उपशम सम्यक्त्व में क्रमशः से (णव सग छेय) नौ, सात और छह उपयोग होते हैं (मिस्से) मिश्र सम्यक्त्व में (मिस्सा) मिश्र रूप (छप्) छह उपयोग (सासण) सासादन सम्यक्त्व में (पंच) पांच उपयोग (च) और (मिच्छे) मिथ्यात्व में (पणयं) पांच उपयोग होते हैं।
भावार्थ- अभव्य जीवों के कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनोपयोग इस प्रकार में पांच अशुभ उपयोग होते हैं सम्यक्त्व मार्गणा में क्षायिक सम्यक्त्व में तीन कुज्ञानोपयोगों को छोड़कर शेष नौ उपयोग होते हैं वेदक सम्यक्त्व में तीन कुज्ञानोपयोग, केवलज्ञानोपयोग और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर
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