Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 43
________________ (२८) भावार्थ- मिश्र सम्यक्त्व में त्रिमिश्र अर्थात् औदारिक मिश्र, वैक्रियिक मिश्र और आहारक मिश्र, आहारक काय योग और कार्मण काययोग को छोड़कर चार मनोयोग चार वचनयोग, औदारिक काययोग और वैक्रियिक काययोग इस प्रकार दस योग होते हैं। इस प्रकार सम्यक्त्व मार्गणा पूर्ण हुई। संज्ञीजीवों में सभी योग होते हैं। असंज्ञी जीवों में औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग और अनुभय वचनयोग इस प्रकार चार योग होते हैं। इस प्रकार संज्ञी मार्गणा पूर्ण हुई। आहारक जीवों के कार्मण काययोग को छोड़कर शेष चौदह योग होते हैं। अनाहारक जीवों में एक कार्मण काययोग होता है। यह तब संभव होता है जब जीव विग्रहगति प्राप्त करता है। इस प्रकार आहारमार्गणा पूर्ण हुई। इस प्रकार मार्गणाओं में पन्द्रह योगों का वर्णन पूर्ण हुआ। इति मार्गणासु पंचदशयोगाः समाप्ताः । अथ चतुर्दशमार्गणास्थानेषु द्वादशोपयोगाः कथ्यन्ते; णव णव बारस णव गइचउक्कए तिण्णि इगिबितियक्खे। चउरक्खे उवओगा चउ बारस हंति पंचक्खे।। ३२॥ नव नव द्वादश नव गतिचतुष्के त्रय एकद्वित्र्यक्षे। . चतुरक्षे उपयोगाश्चत्वारो द्वादश भवन्ति पंचाक्षे ।। णवेत्यादि। गतिचतुष्के, णव णव बारस णव- नव नव द्वादश नव। अत्र यथासंख्यालंकारः। तद्यथा। नरकगतौ नवोपयोगाः। ते के ? कुमति-कुश्रुत कवधि - सम्यज्ञानत्रीणि चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनानि त्रीणि, एवं उपयोगा नव तिर्यग्गतावपि एते एव उपयोगा नव भवन्ति। मनुष्यगतौ । द्वादशोपयोगा भवन्ति। ते के ? कुमतिकुश्रुत-क्ववधि -सुमति-सुश्रुताअवधि ... मनःपर्यय केवलज्ञानान्यष्टौ चक्षुरक्षुवधिकेवलदर्शनानि चत्वारि एवं द्वादशोपयोगा मनुष्यगतौ मनुष्याणां ज्ञातव्या इत्यर्थः । देवगतौ नव ये नारकगतावुक्तास्त एवोपयोगा नव भवन्ति। इति गतिमार्गणा। तिण्णिइगिवितियखे. एकेन्द्रिये द्वीन्द्रिये त्रीन्द्रिये च, तिण्णि इत्युपययोग त्रयं भवति। कुमति- कुश्रुतज्ञानद्वयं अचक्षुर्दर्शनमेकमिति त्रयं। चउरक्खे उवओगा चतुरिन्द्रिये उपयोगाश्चत्वारः। ते के? कुमति कुश्रुत ज्ञानपयोगौ द्वौ चक्षुरचक्षुर्दर्शनोपयोगौ द्वौ एवं चत्वारः। बारस हुंति पंचक्खे-पंचाक्षे पंचेन्द्रिये द्वादशोपयोगा भवन्ति मनुष्या मनुष्यपेक्षया। इतीन्द्रियमार्गणा।। ३२।। चौदह मार्गणा स्थानों में वारह उपयोग कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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