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(२६)
रहित शेष तेरह योग होते हैं। इस प्रकार संयम मार्गणा पूर्ण हुई। “चक्खुम्मि मिस्सूणा'' इस पद का सम्बन्ध आगे की गाथा से है।
बारस अचक्षुअवहिसु सब्बे सत्तेव केवलालोए। किण्हादितिए तेरस पणदह तेजादियचउक्के ।। २६॥
द्वादश अचक्षुरवध्योः सर्वे सप्तैव केवलालोके।
कृष्णादित्रिके त्रयोदश पंचदश तेज-आदिकचतुष्के॥ चक्खुम्मि मिस्सूणा इति चक्षुर्दर्शने मिश्रोना औदारिकमिश्रवैक्रियिकमिश्रकार्मणकायहीनाः, बारस- द्वादशयोगा भवन्ति। अचक्खुअवहिसु सव्वे- अचक्षुर्दशऽनविधिदर्शने च सर्वे पंचदशयोगाः स्युः। सत्तेव केवलालोएकेवलदर्शने सप्तैव केवलज्ञानोक्ता भवन्ति। इति दर्शनमार्गणा। किण्हादितिए तेरसकृष्णादित्रिके कृष्णनीलकापोतलेश्यासु आहारकद्वयं विना त्रयोदश योगा भवन्ति। पणदह तेजादियचउक्के- पीतपद्मशुक्लेश्यासु भव्ये च इति चतुष्के, पणदह- पंचदश योगा भवन्ति॥२६॥
(२६) अन्वयार्थ- (चक्खुम्मि) चक्षुदर्शन में (मिस्सूणा) औदारिक मिश्र, वैक्रियिक मिश्र और कार्मण काययोग से रहित (वारस) बारह योग होते हैं। (अचक्खु अवहिसु) अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन में (सव्वे) सभी पन्द्रह योग होते हैं। (केवलालोए) केवलदर्शन में (सत्तेव) सात योग अर्थात् सत्य, अनुभय मनोयोग, और सत्य, अनुभय वचनयोग, दोनों मिलाकर चार और औदारिक काय, औदारिक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग इस प्रकार सब मिलाकर सात योग जानना चाहिए (किण्हादितिए) कृष्णादि तीन लेश्याओं में आहारक द्विक को छोड़कर (तेरस) तेरह योग (तेजादिय चउक्के) पीत, पद्म और शुक्ल लेश्याओं तथा भव्य मार्गणा में (पणदह) पन्द्रह योग होते हैं।
तिदसाऽभव्वे सबै खाइयजुम्मे खु उवसमे सम्मे। सासणमिच्छे तेरस अतिमिस्साहारकम्मइया।। ३०॥
त्रयोदशाभव्ये सर्वे क्षायिकयुग्मे खलु उपशमे सम्यक्त्वे।
सासादनमिथ्यात्वयोः त्रयोदश अत्रिमिश्राहारकर्मणाः ।। अभव्यजीवे आहारद्वयं विना अन्ये त्रयोदश योगा भवन्ति। इति लेश्यामार्गणा- भव्यमार्गणाद्वयं। सव्वे खाइयजुम्मे खु खु स्फुटं, क्षायिकयुग्मे क्षायिकवेदकसम्यक्त्वे च सर्वे पंचदशयोगाः सन्ति। उवसमे सम्मे सासणमिच्छे तेरस
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