Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 47
________________ (३२) कुज्ञानोपयोग, मति, श्रुत अवधि ज्ञानोपयोग चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शनोपयोग तथा पुरुषवेद में और क्रोध, मान, माया लोभ कषाय में केवल ज्ञानोपयोग और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर दस उपयोग होते हैं। ज्ञान मार्गणा में उपयोग अण्णाणतिए ताणि य ति चक्खूजुम्मं च पंच सग चउसु। चउ तिण्णि णाण दंसण पंचमणाणंतिमा दुण्णि ।। ३७।। । अज्ञानत्रिके तान्येव त्रीणि चक्षुर्युग्मं च पंच सप्त चतुषु। चत्वारि त्रीणि ज्ञानानि दर्शनानि पंचमज्ञानेऽन्तिमौ द्वौ।। अण्णाणेत्यादि। अज्ञानत्रिके कुमतिकुश्रुतक्काधिज्ञानत्रिके, ताणि य ति-- तानि अज्ञानानि त्रीणि। चक्खूजुम्मं च पंच- च पुनः चक्षुर्युग्मं एवं पंच। कुमतिज्ञाने कुश्रुतज्ञाने कवधिज्ञाने च कुमतिकुश्रुतविभंगज्ञानानि त्रीणि चक्षुरचक्षुदर्शने द्वे एते उपयोगाः पंच स्युः। सग चउसु चउ तिण्णि णाण दंसण- इति, चतुर्षु मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानेषु सप्तोपयोगा भवन्ति। ते के ? चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि दर्शनानि एवं सप्तपयोगाः स्युः। पंचमणाणंतिमा दुण्णि- इति, पंचमे केवलज्ञाने अन्तिमौ केवलज्ञानदर्शनोपयोगौ द्वौ भवतः। इति ज्ञानमार्गणा।। ३७।। गाथार्थ-३७ (अण्णाणतिए) तीन कुज्ञानों में (ताणि य) उतने ही अर्थात् तीन अज्ञान (चक्खूजुम्म) चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनापयोग ये (पंच) पांच उपयोग (चउसु) चार ज्ञानों में अर्थात, मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान में (चउणाण) चार ज्ञानोपयोग(च) और (तिण्णिदंसण) तीन दर्शनोपयोग इस प्रकार (सग) सात उपयोग तथा (पंचमणाणंतिमा) पंचम ज्ञान अर्थात् केवलज्ञान में अन्तिम (दुण्णि) दो उपयोग होते हैं। ____ भावार्थ- ज्ञान मार्गणा में कुमति, कुश्रुत और विभंगावधि ज्ञान में कुमति, कुश्रुत, विभंगावधिज्ञान, चक्षु, अचक्षुदर्शन उपयोग इस प्रकार से पांच उपयोग होते हैं। मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान में मति श्रुत, अवधि मनःपर्यय ज्ञानोपयोग तथा चक्षु अचक्षु, अवधि दर्शनोपयोग इस प्रकार ये सात उपयोग होते हैं। केवल ज्ञान मे केवलज्ञानोपयोग तथा केवलदर्शनोपयोग ये दो उपयोग होते हैं। सामाइयजुम्मे तह सुहमे सग छप्पि तुरियणाणूणा। परिहारे देसजई छब्भणिय असंजमे णविति।। ३८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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