Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 32
________________ (१७) मिश्राविरत्यभिधानानि गुणस्थानानि चत्वारि भवन्ति। तेजापउमासु पीतापमलेश्ययोर्द्वयोः; सत्तगुणा- मिथ्यात्वादीन्यप्रमत्तात्तानि सप्त भवन्ति।। १८ ।। (१८) अन्वयार्थ- (चक्खुदुगे) चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन में (वारस) बारह गुणस्थान (अवहीए) अवधिदर्शन में (णव) नौ (केवलालोए) केवलदर्शन में (दुण्णि) दो (किण्हादितिए) कृष्णादि तीन लेश्याओं में (चउरो) चार (तेजापउमासु) पीत पद्मलेश्या में (सत्तगुणा) सात गुणस्थान होते हैं। भावार्थ- चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन इन दोनों में मिथ्यात्व गुणस्थान से क्षीणकषाय गुणस्थान पर्यन्त १२ गुणस्थान होते हैं। अवधिदर्शन में अविरत गुणस्थान से प्रारम्भ कर क्षीणकषाय गुणस्थान तक नौ गुणस्थान होते हैं। केवलदर्शन में दो सयोग केवली और अयोगकवली इस प्रकार दो गुणस्थान होते हैं। इस प्रकार दर्शनमार्गणा समाप्त हुई। कृष्णादि तीन अशुभ लेश्याओं में मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र और अविरत सम्यग्दृष्टि चार गुणस्थान होते हैं। पीत और पद्म इन दो शुभ लेश्याओं में मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर अप्रमत्त गुणस्थान तक सात गुणस्थान होते हैं। सियलेस्साए तेरस भवे सवे अभवए मिच्छं। इगिदह चदु अड खाइयतिए तहण्णेसु णियइक्कं ।। १६॥ सितलेश्यायां त्रयोदश भव्ये सर्वाणि अभव्ये मिथ्यात्वं। एकादश चत्वारि अष्टौ क्षायिकत्रये तथान्येषु निजैकम्॥ सियलेस्साए तेरस- सितेलेश्यायां शुक्ललेश्यायां मिथ्यात्वप्रभृतित्रयो दशगुणस्थानानि भवन्ति। इति लेश्यामार्गणा। भव्वे सव्वे- इति, भव्यजीवे, सब्वे-- इति, मिथ्यात्वाद्ययोगकेवलिपर्यन्तानि चतुर्दशगुणस्थानानि सर्वाणि भवन्ति। अभव्वए- इति, अभव्यजीवे एकं मिथ्यात्वगुणस्थानं भवति। इति भव्यमार्गणा। इगिदह चदु अड खाइयतिए-क्षायिकत्रिके अत्र यथासंख्येन व्याख्या वर्तते तथाहिक्षायिकसम्यक्त्वे एकादश चतुर्थादिसिद्धपर्यन्तान्येकादशगुणस्थानानि विद्यन्ते। वेदकसम्यक्त्वे, चदु- अविरताद्यप्रमत्तान्तानि चत्वारि गुणस्थानानि प्रतिपत्तव्यानि। उपशमसम्यक्त्वे, अड- अविरताद्युपशान्तकषायान्तानि अष्टौ ज्ञेयानि। तहऽण्णेसुतथान्येषु मिथ्यात्वसासादनमिश्रेषु, णियइक्क-- निजैकमिति। कोऽर्थः ? मिथ्यात्वसम्यक्त्वे मिथ्यात्वसम्यक्त्वे मिथ्यात्वमेकं भवति। सासादनसम्यक्त्वे निजं सासादनगुणस्थानमस्ति। मिश्रनानि सम्यक्त्वे स्वकीयं मिश्रनामगुणस्थानं भवेत्। इति सम्यक्त्वमार्गणा।। १६॥ (१६) अन्वयार्थ- (सियलेस्साए) शुक्ल लेश्याओं में (तेरस) तेरह गुणस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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