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(२०) एकादशयोगा भवन्ति। ते के? अष्टौ मनोवचनयोगा औदारिकतन्मिश्रकार्मणकाययोगाश्चेति त्रय एवं एकादश योगाः स्युः॥२१॥
अब चौदह मार्गणाओं पन्द्रह योगों को प्रकट करते हुये आचार्य कहते हैं
(२१) अन्वयार्थ- (णिरयसुरे) नरकगति और देवगति के जीव (आहारयओरालियदुगेहि) आहारक काययोग, आहारककमिश्रकाययोग, औदारिक काययोग और औदारिक मिश्र काययोग इन चार योगों से (हीणा) रहित (हवंति) होते हैं। उनके (इगिदस) ग्यारह योग होते हैं। (आहारयवेउव्वियदुग जोगे) आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग, वैक्रियिक काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग को छोड़कर (तिरियक्खे) तिर्यंचों में (इगिदस) ग्यारह योग होते हैं।
भावार्थ- नरकगति और देवगति में आहारक काययोग और आहारक मिश्रकाययोग औदारिक काययोग और औदारिक मिश्रकाययोग इन चार योगों से रहित अन्य ग्यारह योग होते हैं। अर्थात् चार मनोयोग, चार वचन योग, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग इस प्रकार ग्यारह योग नरकगति और देवगति में होते हैं। तिर्यंच गति में आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग, वैक्रियिक काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग इन चार काययोग से रहित शेष ग्यारह योग होते हैं अर्थात् चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, और कार्मण काययोग इस प्रकार ग्यारह योग जानना चाहिए।
वेगुवियदुगरहिया मणुए तेरस एयक्खकायेषु। पंचसुओरालदुगं कम्मइयं तिण्णि वियलेसु।। २२॥
वैगूर्विकद्विकरहिता मनुजे त्रयोदश एकाक्षकायेषु।
पंचसु औदारिकद्विकं कार्मणं त्रयो विकलेषु।। वेगुम्वियरहिया मणुए तेरस--इति, मनुष्यगतौ वैक्रियिकवैक्रियिक मिश्रकाययोगद्वयरहिता अन्ये त्रयोदश योगा भवन्ति। इति गतिमार्गणा। एयक्खकायेसु पंचसु ओरालदुगं कम्मइयं तिण्णि इति, एकेन्द्रिये, कायेसु पंचसु- इति, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायेषु च औदारिकौदारिक मिश्रकाययोगद्वयं, कम्मइयंकार्मण काययोग इति त्रयो योगा भवन्ति। वियलेसु इति पदस्य व्याख्यानमुत्तरगाथायां वर्तते ॥ २२॥ तद्यथा;
(२२) अन्वयार्थ- (मणुए) मनुष्यगति में (वेगुम्वियदुगरहिया) वैक्रियिक
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