Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 38
________________ (२३) भावार्थ- विभंगावधि ज्ञान में औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग इन पाँच योगों से रहित दस योग होते हैं । वे इस प्रकार हैं-- चार मनोयोग, चार वचनयोग औदारिक काययोग और वैक्रियिक काययोग ये दस काययोग विभंगावधि ज्ञान में होते हैं । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, और अवधिज्ञान में पन्द्रह योग होते हैं । मनः पर्ययज्ञान में प्रथम नौ योग होते हैं - चार मनोयोग, चार वचनयोग और एक औदारिक काययोग इस प्रकार नौ योग जानना चाहिये। ओरालिय तम्मिस्सं कम्मइयं सच्चअणुभयाणं च । मणवयणाण चउक्कं केवलणाणे सगिगिदसयं ॥ २६॥ औदारिकः तन्मिश्रः कार्मणं सत्यानुभयानां च । मनोवचनानां चतुष्कं केवलज्ञाने सप्त एकादशकं ।। केवलणाणे- केवलज्ञाने, सग - सप्तयोगा भवन्ति । किंतन्नामानः ओरालिए तिम्मिस्सं औदारिककाययोगः, तन्मिश्र औदारिक- मिश्रकाययोगः, कार्मणकाययोग एते त्रयो योगाः । सच्चेत्यादि - सत्यानुभयमनोवचनानां चतुष्कं सत्यमनोयोगानुभयमनोयोगौ, सत्यवचनयोगानुभयवचनयोगौ इति चत्वारो योगा एवं एकत्रीकृताः सप्तयोगाः केवलज्ञाने भवन्तीत्यर्थः । अत्र तटस्थेनोच्यत - औदारिककाययोग औदारिकमिश्रकाययोगः कार्मणकाययोगश्चैते त्रयः केवलज्ञाने कथं संभवन्तीति चेत्, तदुच्यते - समुद्धातापेक्षया संभावनीयाः । तथा चोक्तं आगमग्रन्थे दंडदुगे ओरालं कवाडजुगले य पयरसंवरणे । मिस्सोरालिय भणियं सेसतिए जाण कम्मइयं ॥ 911 अस्या अर्थः- दंडकपाटयुग्मे औदारिककाययोगो भवति । कवाडयुगले य-च पुनः कपाटप्रतरयुग्मे औदारिककायोगो भवति । पयरसंवरणे मिस्सोरालिय भणियं प्रतरसंवरणे प्रतरसमुद्धातसंकोचने औदारिकमिश्र काययोगो भणितः । शेष त्रिक प्रतरलोकपूरणसंवरणत्रये कार्मणकाययोगं जानीहि । इति ज्ञानमार्गणा । " इगिदसयं” इति पदस्य उत्तरगाथायां सम्बन्धः ।। २६ । अन्वयार्थ - (केवलणाणे) केवलज्ञान में (सग) सात योग होते हैं। ये (ओरालिय) औदारिक काययोग (तम्मिस्सं ) औदारिक मिश्रकाययोग (कम्मइयं ) कार्मणकाययोग ये तीन (च) और ( सच्च अणुभयाणं मणवयणाणं) सत्य, अनुभय, मनोयोग और वचनयोग इस प्रकार ( चउक्कं ) चार योग दोनों को मिलाकर सात योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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