Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 36
________________ (२१) काययोग और वैक्रियिक मिश्रकाययोग, इन दो योगों से रहित (तेरस) तेरह योग होते हैं। (एयक्खकायेषु) एकेन्द्रियादिक पंच स्थावरों में (ओरालदुगं कम्मइयं तिण्णि) औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग और कार्मण काययोग इस प्रकार तीन काय योग होते हैं। “वियलेसु" इस पद का सम्बन्ध आगे की गाथा से जानना चाहिए। अणुभयवयणेण जुआ चदु पंचक्खे दु पंचदस जोगा। तसकाए विण्णेया पणदह जोगेसु णियइक्कं ।। २३ ।। अनुभयवचनेन युताः चत्वारः पंचाक्षे तु पंचदश योगाः। त्रसकाये विज्ञेयाः पंचदश योगेषु निजैकः।। वियलेसु अणुभयवयणेण जुआ चदु इति, विकलेन्द्रियेषु द्वित्रिचतुरिन्द्रियेषु अनुभयवचनेन युक्ताः चत्वारो योगा भवन्ति। ते के? औदारिकौदारिकमिश्रकार्मणानुभयवचननामान एते चत्वारो योगाः। पंचखे दु पंचदस जोगा- तु पुनः पंचाक्षे पंचेन्द्रियेषु पंचदश योगा भवन्ति। पंचेन्द्रियेषु नानाजीवापेक्षया यथासंभवमुत्प्रेक्षणीयाः। तसकाए विण्णेया पणदह- इति, त्रसकायेषु सामान्यत्वेन पंचदशयोगाः सन्ति। इतीन्द्रियमार्गणाकायमार्गणाद्वयं जातं। जोगेसुणियइक्कं- इति, पंचदशयोगेषु निजैकः स्वकीयः स्वकीयो योगो भवति। को भावः? सत्यमनोयोगे सत्यमनोयोगः, असत्यमनोयोगऽसत्यमनोयोगः। एवं सर्वत्र ज्ञेयं । इति योगमार्गणा।। २३॥ (२३) अन्वयार्थ- (वियलेसु) विकलेन्द्रियों में (अणुभयवयणेण) अनुभय वचन से (जुआ) युक्त (चदु) चार (पंचक्खे दु पंचदस योगा) पंचेन्द्रियों में पन्द्रह योग (तसकाए पणदह विण्णेया) त्रसकायों में पन्द्रहयोग जानना चाहिए और (जोगेसु णियइक्कं) पन्द्रह योगों के प्रत्येक में वही-वहीं नाम वाला योग होता है। भावार्थ- विकलेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों में अनुभयवचन से युक्त चार योग होते हैं। वे इस प्रकार हैं-- औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग कार्मण काय योग और अनुभय वचनयोग हैं। और पंचेन्द्रियों में नाना जीवों की अपेक्षा पन्द्रह योग होते हैं। त्रसकायों में सामान्यतः पन्द्रह योग होते हैं। इस प्रकार इन्द्रिय मार्गणा और कायमार्गणा ये दो मार्गणायें समाप्त हुईं। तथा पन्द्रह योगों में प्रत्येक वही वही नाम वाला योग होता है। यथा सत्य मनोयोग में सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग में असत्यमनोयोग इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये। इस प्रकार योग मार्गणा पूर्ण हुई। आहारयदुगरहिया तेरस इत्थीणउसए पुंसे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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