Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ भावार्थ- आचार्य श्री जिनचन्द्र ने इस गाथा के मंगलाचरण में जीवसमास, गुणस्थान, संज्ञा, पर्याप्ति, प्राण और नौ मार्गणाओं से रहित सिद्धों को नमस्कार कर सिद्धांतसार नामक ग्रन्थ कहने की प्रतिज्ञा की है। सिद्धों और संसारी जीवों में मार्गणायें सिद्धाणं सिद्धगई दंसण णाणं च केवलं खइयं। सम्मत्तमणाहारे सेसा संसारिए जीवे।। २॥ सिद्धानां सिद्धगतिः दर्शनं ज्ञानं केवलं क्षायिक। सम्यक्त्वमनाहारकं शेषाः संसारिणि जीवे।। नमस्कारगाथायां प्रोक्तं मार्गणानवरहितान् सिद्धान् नत्वा, तर्हि सिद्धेषु पंच काः सन्तीत्याशंकायामाह- सिद्धाणं सिद्धगई इत्यादि। सिद्धानां सिद्धगतिः स्यात्। सिद्धगतिरिति कोऽर्थः ? सिद्धपर्यायप्राप्तिरित्यर्थः। इत्येका मार्गणा सिद्धेषु वर्तते। तथा, दसण णाणं च केवलं खइयं- केवलशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते, सिद्धानां केवलदर्शनमिति सिद्धेषु द्वितीया मार्गणा वर्तते। केवलज्ञानमिति तृतीया मार्गणा सिद्धेषु स्यात्। सम्मत्तमणाहारे- सिद्धानां क्षायिकं सम्यक्त्वं चतुर्थी मार्गणा सिद्धेषु विद्यते। सिद्धानामनाहरकत्वं पंचमी मार्गणा सिद्धेषु भवति। तात्पर्यमाहइत्युक्तपंचमार्गणासहितान् नवमार्गणारहितान् सिद्धान् नत्वेत्यर्थः। सेसा संसारिए जीवे- शेषा उद्धरिता मार्गणाः संसारिषु वर्तन्ते। अथवा असेसा संसारिए जीवे ये के संसारिणो जीवा वर्तन्ते तेषु अशेषाश्चतुर्दशमार्गणा स्युरित्यर्थः।।२।। अन्वयार्थ- (सिद्धाणं) सिद्धों के (सिद्धगई) सिद्धगति (दंसण णाणं च केवलं) केवल दर्शन, केवलज्ञान, (खइयं सम्मत्तं) क्षायिक सम्यकत्व, (अणाहारे) अनाहारक ये पाँच मार्गणायें होती हैं और (संसारिए जीवे) संसारी जीवों में (असेसा) सभी मार्गणायें पाई जाती हैं। भावार्थ- जीव दो प्रकार के होते हैं- संसारी जीव और मुक्त जीव। सिद्ध जीवों के सिद्धगति, केवलदर्शन, केवलज्ञान, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहारक ये पाँच मार्गणायें पाई जाती हैं और संसारी जीवों के सभी चौदह मार्गणायें पाई जाती हैं। अथ प्रथमसूत्रपातनिकामाहः-- जीवगुणे तह जोए सपच्चए मग्गणासु उवओगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86