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संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक दो जीव समास होते हैं। केवलदर्शन में एक पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक एक ही जीव समास होता है। कृष्ण, नील और कापोत इन तीन लेश्याओं में सभी चौदह जीव समास जानना चाहिए। पीत, पद्म और शुक्ल इन तीन शुभ लेश्याओं में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीव समास होते हैं।
चउदस भव्वाभवे दुण्णेगं खाइयादितिसु मिस्से। अपुण्णा सग पुण्णा सण्णी इगि चउदस य दोसुकमे॥१०॥
चतुर्दश भव्याभव्ययोः द्वौ एकः क्षायिकादित्रिषु मिश्रे।
अपूर्णाः सप्त पूर्णः संज्ञी एकः चतुर्दश च द्वयोः क्रमेण॥ भव्यजीवे अभव्यजीवे च चतुर्दश जीवसमासा भवन्ति। दुण्णेगं खाइयादितिसु मिस्से अत्र यथासंख्यं व्याख्येयं, क्षायिकादित्रिषु क्षायिकोपशमवेदकसम्यक्त्वेषु पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्ता-पर्याप्तजीवसमासौ द्वौ भवतः, मिश्रे सम्यक्त्वे पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तक एक एव जीवसमासो भवति। मिश्रे मरणासंभवादपर्याप्तत्वं तु न संभवति। अपुण्णा सग पुण्णा सण्णी इति चउदस य दोसु कमे- कमे इति क्रमेण, दोसु-द्वयोः सासादनमिथ्यात्वसम्यक्त्वयोः, अपुण्णा सग-अपर्याप्ताः सप्त, सण्णी इगिपर्याप्तसंज्ञी एकः, चतुर्दश च,। अथ व्यक्तिः सासादनसम्यक्त्वे सम्यक्त्व एकेन्द्रियसक्ष्मबादरद्वित्रिचतुरेन्द्रियपंचेन्द्रियसंइयसंज्ञिन एते सप्त अपर्याप्ताः पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्त एक एव एवं अष्यै जीवसमासाः (सासादनसम्यकत्वे) भवन्तीति भावः। मिथ्यात्वसम्यक्वे एकेन्द्रियादयश्चतुर्दश जीवसमासा भवन्तीति सूत्रार्थः।।१०।।
अन्वयार्थ- (भव्वाभब्वे) भव्य और अभव्य जीवों में (चउदस) चौदह जीव समास (खाइयातिसु) क्षायिकादि तीन सम्यक्त्वों में (दुण्ण) दो (मिस्से) मिश्र सम्यक्त्व (एग) एक (दोसु) दो अर्थात् सासादन सम्यक्त्व और मिथ्यात्व सम्यक्त्व इनमें (अपुण्णा सग) अपर्याप्तक सात (सण्णी इगि)- संज्ञी एक (य) और (चउदस) चौदह जीव समास जानना चाहिए।
भावार्थ- भव्य और अभव्य जीवों में चौदह जीव समास होते हैं। क्षायिक, उपशम और वेदक सम्यक्त्वों में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार दो जीव समास होते हैं। मिश्र सम्यक्त्व (तृतीय गुणस्थान) में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक एक ही जीव समास होता है। मिश्र सम्यक्त्व में मरण नहीं होने से अपर्याप्तक भी संभव नहीं है। सासादन सम्यकत्व में एकेन्द्रिय सूक्ष्म, बादर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय संज्ञी और असंज्ञी अपर्याप्तक इस प्रकार सात अपर्याप्तक और एक पंचेन्द्रिय
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