Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 29
________________ (१४) कहा भी है कि मिश्र क्षीणे सयोगे च मरणं नास्ति देहिनाम् । प्राणियों का मिश्र गुणस्थान, क्षीणकषाय और सयोग केवली गुणस्थान में मरण नहीं होता है । वैक्रियिक काययोग में मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र और अविरत में चार गुणस्थान होते हैं। वैक्रियिक मिश्रकाययोग में मिथ्यात्व, सासादन और अविरत ये तीन गुणस्थान होते हैं। आहारक काययोग और आहारक मिश्र काययोग में एक प्रमत्त संयत नामक गुणस्थान होता है। इस प्रकार योग मार्गणा समाप्त हुई । वेदतिए कोहतिए णवगुणठाणाणि दसय तह लोहे । अण्णाणतिए दो मइतिए चउत्थादिणव चेव ।। १५ ।। वेदत्रिके क्रोधत्रिके नवगुणस्थानानि दशकं तथा लोभे । अज्ञानत्रिके द्वे मतित्रिके चतुर्थादिनव चैव ॥ वेदतिए - वेदत्रिके स्त्रीवेदपुंवेदनपुंसकवेदेषु त्रिषु मिथ्यात्वादीन्यनिवृत्तिकरणपर्यन्तानि नवगुणस्थानानि भवन्ति । इति वेदमार्गणा । कोइतिए णवक्रोधत्रिके क्रोधमानमायासु मिथ्यात्वादीन्यनिवृत्तिकरण - पर्यन्तानि गुणस्थानानि भवन्ति । दसय तह लोहे - तथा लोभे मिथ्यात्वप्रभृतिसूक्ष्म - साम्परायपर्यन्तं गुणस्थानदशकं भवति । इति कषायमार्गणा पूर्णा । अण्णाणतिए दो - अज्ञानत्रिके द्वे गुणस्थाने कुमतिकुश्रुतक्ववधिषुत्रिषु प्रत्येकं - मिथ्यात्वसासादनगुणस्थाने द्वे भवतः । मइतिए चउत्थादिणव चेव - मतित्रिके मतिश्रुतावधिज्ञानेषु चतुर्त्यादिनव चैव अविरतादिक्षीणकषायपर्यन्तानि नवगुणस्थानानि भवन्ति ॥ १५ ॥ (१५) अन्वयार्थ - ( वेदतिए) वेदत्रिक अर्थात् स्त्रीवेद, पुंवेद, और नपुंसकवेद में (नव) नौ गुणस्थान (कोहतिए) क्रोधत्रिक, क्रोध, मान और माया में ( णव गुण ठाणाणि) नव गुणस्थान (अण्णाण तिए) अज्ञानत्रिक में (दो) दो गुणस्थान प्रथम और द्वितीय (मइतिए) मतिश्रुत अवधिज्ञान में (चउत्थादिणव चेव ) चतुर्थ गुणस्थान को आदि लेकर नौ गुणस्थान होते हैं । भावार्थ- स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद इन तीनों वेदों में मिथ्यात्व गुणस्थान से अनिवृत्तिकरण पर्यन्त नौ गुणस्थान होते हैं। इस प्रकार वेद मार्गणा में गुणस्थान निरूपण हुआ । क्रोध, मान और माया इन तीन कषायों में मिथ्यात्व गुणस्थान को आदि लेकर अनिवृत्तिकरण तक नौ गुणस्थान होते हैं । तथा लोभ कषाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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