Book Title: Siddhantasara
Author(s): Jinchandra Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 27
________________ (१२) से लेकर देशसंयम तक पाँच गुणस्थान मनुष्य गति में सम्पूर्ण चौदह गुणस्थान और देवगति में मिथ्यात्वादि चार गुणस्थान होते हैं । तथा एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है विशेषता यह है कि अपर्याप्तक अवस्था में दूसरा सासादन गुणस्थान भी हो सकता है। चउदस पंचक्खतसे धरादितिसु दुगिगि तेयपवणेसु । सच्चाणुभये तेरस मणवयणे बारसऽण्णेसु ॥ १३॥ , चतुर्दश पंचाक्षत्रसयोः धरादित्रिषु द्वे एकं तेजः पवनयोः । सत्यानुभययोः त्रयोदश मनोवचनयोः द्वादशान्येषु || चउदसेत्यादि । पंचक्खतसे- पंचाक्षेसु पंचेन्द्रियेषु पंचाक्षेसु पंचेन्द्रियेषु मिथ्यात्वादि चतुर्दशगुणस्थानानि भवन्ति । इन्द्रियमार्गणा समाप्ता । " तसे" इतः प्रारभ्य कायमार्गणा निरूप्यते तसे इति त्रसकायेषु च मिथ्यात्वादि चतुर्दशगुणस्थानानि स्युः । धरादितिसु दुगि- धरादिषु धरादिषु त्रिषु पृथिव्यब्वनस्पतिकायेषु, दुगिमिथ्यात्वसासादनगुणस्थानद्वयं भवति । इगि तेयपवणेसु- तेजःपवनकायेषु एकं मिथ्यात्वगुणस्थानं भवति । इति कार्यमार्गणा समाप्ता । सच्चाणुभये तेरस मणवयणेसत्यानुभयमनोयोगे मिथ्यात्वादित्रयोदश, सत्यानुभयवचनयोगे त्रयोदश । बारसण्णेसु अन्येषु असत्यमनोयोगेभयमनोयोगासत्यवचनयोगोभयवचनयोगेषु चतुर्षु प्रत्येकं बारस - ( द्वादश) मिथ्यात्वादीनि क्षीणकषायान्तानि स्युः ॥ १३ ॥ त्रिषु अन्वयार्थ - (पंचक्ख तसे) पंचेन्द्रिय और त्रसकायिकों में (चउदस) चौदह गुणस्थान (धरादितिसु) पृथ्वीकायिकादिक तीन में (दुगि) दो अर्थात् पृथ्वीकायिक जलकायिक और वनस्पतिकायिक में दो और (तेयपवणेसु) तेजस्कायिक और वायुकायिक में (इगि) एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है । (सच्चाणुभये मणवयणे) सत्य, अनुभय, मनोयोग और वचनयोग में (तेरस) तेरह गुणस्थान ( अण्णेसु) शेष योगों में (बारस) वारह गुणस्थान होते हैं । भावार्थ- पंचेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्वादि चौदह सभी गुणस्थान पाये जाते हैं । "तसे" इस शब्द से काय मार्गणा का निरूपण करते हैं । जसकायिकों में चौदह गुणस्थान होते हैं । पृथ्वीकायिक आदि तीनों में दो, मिथ्यात्व और सासादन इस प्रकार दो गुणस्थान होते हैं। तेज कायिक अर्थात् अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है। इस प्रकार कायमार्गणा समाप्त हुई। सत्य, अनुभय मनोयोग में तेरह गुणस्थान और सत्य, अनुभय वचन योग में तेरह गुणस्थान होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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