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(४) पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तापर्याप्तौ जीवसमासौ भवतः। तथा मनुष्यगत्यां देवगत्यां च संज्ञिपर्याप्तापर्याप्तजीवसमासद्वयं भवति। चउदस तिरिएसु---तिर्यग्गतौ चतुर्दशजीवसमासा भवन्ति। ते के ?बादरसुहमेगिंदियवितिचउरिदियअसण्णिसण्णी
य। पज्जत्तापज्जत्ता एवं ते चोद्दसा जीवा॥ १॥
एवं गाथोक्तचतुर्दशजीवसमासा भवन्ति। दोण्णि वियलेसु-द्वि त्रिचतुरिन्द्रियेषु, दोण्णि-द्वौ पर्याप्तापर्याप्तौ जीवसमासौ भवतः। एयपणक्खे वि य चदु- एकेन्द्रियेषु पंचेन्द्रियेषु च चत्वारो जीवसमासाः। तत्रैकेन्द्रियेषु एकेन्द्रियसूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्ता इति चत्वारो जीवसमासाः सन्ति। पंचेन्द्रियेषु पंचेन्द्रियसंझ्यसंज्ञिनः पर्याप्तापर्याप्ता इति चत्वारो जीवसमासा भवन्ति। पढवीपणए य चत्तारि- पृथ्वीपंचके च चत्वारः पृथ्व्यप्तेजोवायुवनस्पतिषु चत्वारो जीवसमासा भवन्ति। ते के ? सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्ता इति चत्वारः। पृथ्वी सूक्ष्मा बादरा पर्याप्ता अपर्याप्ता च। एवमादिषु योज्यम् ।। ४ ।।
अन्वयार्थ- (तिगईसु) तीन गतियों में अर्थात् नरक, मनुष्य देवगति में (सण्णिजुयलं) पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक (तिरिएसु चउदस) तिर्यंचगति में चौदह जीवसमास और (दोण्णि वियलेसु) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में (दोण्णि) पर्याप्तक और अपर्याप्तक दो-दो जीव समास होते हैं। (एयपणक्खे वि य चदु) एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रियों में चार जीव समास होते हैं। (पुढवीपणए च चत्तारि) -- पृथ्वीकायिक आदि पाँच स्थावरों में चार जीवसमास होते हैं।
भावार्थ- नरक गति, मनुष्य गति और देवगति इन तीन गतियों में संज्ञी पंचेन्द्रिय में पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो-दो जीव समास होते हैं। तिर्यंच गति में चौदह जीवसमास होते हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय इन जीवों में पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो दो जीव समास जानना चाहिए। एकेन्द्रियों में सूक्ष्म, वादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार चार जीव समास। पंचेन्द्रिय जीवों में पंचेन्द्रिय, संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार चार जीव समास। पृथ्वी कायिक को आदि लेकर पांच स्थावरों में सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार चारचार जीव समास जानना चाहिए।
दस तसकाए सण्णी सच्चमणाईसु सत्तजोगेसु। वेइंदियादिपुण्णा पणमढे सत्त ओराले॥ ५॥
दश त्रसकाये संज्ञी सत्यमनआदिषु सप्तयोगेषु।
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