Book Title: Shrutsagar Ank 038 039 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३८-३९ इसीलिए किसी कवि ने कहा'जीना भला है उसका जो जीता है इंसान के लिए। मरना भला है उसका जो जीता है खुद के लिए।।' जो आत्मा अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए जीवित हो, पूर्णतया परोपकार की भूमिका पर जिसका जीवन निर्वाह हो, उस आत्मा का जीवन धन्य है और उसकी मृत्यु भी मंगलमय होगी। परन्तु जो व्यक्ति सिर्फ अपने लिए जीता अपना पेट भर कर यह समझ ले कि सारी दुनिया का पेट भर गया है, उस व्यक्ति का तो मरना ही श्रेष्ठ है। अपने लिए नहीं जगत् की आत्माओं के लिए मुझे जीवन जीना है। मेरे जीवन में से अनेक व्यक्तियों को लाभ मिले, यह भावना नमस्कार के द्वारा प्राप्त होगी। व्यक्ति जब लघु बनता है तब उसे प्रभुता मिलती है। इस प्रकार प्रभुता के विचार अद्भुत होते हैं। 'लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर ।' संत तुलसीदास का कथन है - जहाँ लघुता होगी वहीं प्रभुता आएगी और यदि पहले ही प्रभुता का नशा बढ़ जाए तो ज्ञानियों ने कहा है कि कुछ मिलने वाला नहीं। वह आत्मा की प्राप्ति से वंचित रहेगा। सारा जीवन धर्म से शून्य रहेगा, कुछ मिलेगा नहीं। भारतीय दर्शन के उन महान विद्वानों ने चित्ता प्रस्तुत किया कि पश्चिम की आँधी में हम किस तरह से अपनी स्थिरता को प्राप्त कर सकते हैं। आपके सामने सर्च लाइट दिया, ज्ञान का ऐसा दिव्य प्रकाश आपके समक्ष रखा और कहा 'अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः। नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्तव्यो धर्मसंग्रहः।।' हे आत्मन् ! मौत आपके मस्तक पर नाच रही है और न जाने कब आप किस निमित्त से चले जाओ, क्या इसका पता है आपको? (क्रमशः) For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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