Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ मार्च-अप्रैल - २०१४ स्वाध्याय-तप करवू जोईए. स्वाध्यायना लाभो : स्वाध्याय शब्दथी गोखेलानो पोपटनी जेम पाठ करी जवो एम नथी, परंतु चिंतन-मननपूर्वक वाचवू, सांभळवू, पूछ, वगेरे समजवू. आवा स्वाध्यायथी आत्महितज्ञान, भावसंवर, नवीन संवेग, स्थिरता, तप, निर्जरा अने परबोध ए सात महान लाभो प्राप्त थाय छे. __ आत्महितज्ञान : स्वाध्यायथी आत्महितनुं ज्ञान थाय छे. आत्मानुं मूळ स्वरूप के, छे, वर्तमानमा आत्मानुं स्वरूप केबुं छे अने कया कारणथी छे? आत्माने वर्तमान स्वरूपमाथी छोडावी मूळ स्वरूपमां केवी रीते लावी शकाय वगेरे ज्ञान स्वाध्यायथी थाय छे. भावसंवर : स्वाध्याय करवाथी भावसंवर थाय छे. संवर एटले कर्मबंधनो अभाव. परंतु अहीं सर्वथा कर्मबंधनो अभाव न समजवो, अशुभकर्मना बंधनो अभाव समजवो. अशुभ कर्मोनुं मुख्य साधन मन छे. स्वाध्याय करती वखते मन स्वाध्यायमां ज केंद्रित बनी जाय छे. स्वाध्याय शुभभाव छे, आथी ते वखते मन पापना विचारोथी रहित बनी जतुं होवाथी अशुभ कर्मनो बंध थतो नथी, शुभभाववाळू होवाथी शुभकर्मनो = पुण्यानुबंधी पुण्यनो बंध थाय छे. ___ नवीन संवेग : स्वाध्यायथी नवो नवो संवेग उत्पन्न थाय छे. रांवेग एटले सुदेव, सुगुरु, सुधर्म प्रत्ये अखंड राग = श्रद्धा. जेम जेम रवाध्याय थतो जाय तेम तेम श्रुतज्ञान वधतुं जाय. जेम जेम श्रुतज्ञान वधतुं जाय तेम तेम देव-गुरु, धर्म प्रत्येना रागमां-श्रद्धामां वृद्धि थती जाय छे. कारण के श्रुतज्ञानथी देव-गुरु धर्मनी महत्ता विशेष समजाय छे. स्थिरता : स्वाध्यायथी श्रद्धामां अने संयममां (= व्रत-नियमोमां) स्थिरता थाय छे. श्रद्धा अने संयम विना मोक्ष न थाय. श्रद्धा अत्यंत दुर्लभ छे. श्रद्धा थया पछी संयम अति दुर्लभ छे. संयमथी मोक्ष थाय, संयमथी मोक्ष तो ज थाय जो संयम श्रद्धायुक्त होय तो, श्रद्धायुक्त संयम बहु ज दुर्लभ छे. जेम श्रद्धायुक्त संयम दुर्लभ छे, तेम श्रद्धा अने श्रद्धायुक्त संयम मळ्या पछी तेमां स्थिर बनवु ए घणुं कठीन छे. श्रद्धा अने संयममां स्थिर रहेवाना अनेक उपायोमा स्वाध्याय उत्तम साधन छे. स्वाध्यायथी श्रद्धा अने संयमनी प्राप्ति थाय छे, अने तेमां स्थिरता थाय छे. तप : स्वाध्यायथी तपनी आराधना थाय छे. कारण के स्वाध्याय एक प्रकारनो तप छे, स्वाध्याय ए अभ्यंतर तप छे. जैनशासनमां बाह्य तप करतां अभ्यंतर तपनी महत्ता विशेष दर्शावी छे. आ अंगे महा महोपाध्याय श्री यशोविजयजी For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84